-हाईकोर्ट ने स्वरूपानंद व वासुदेवानंद को नहीं माना शंकराचार्य
-दोनों संतों के लाखों अनुयायियों को था हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार
-इलाहाबाद जिला अदालत ने सुनाया था स्वरूपानंद के पक्ष में फैसला
इलाहाबाद । आदि जगदगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में एक उत्तर में स्थित उत्तराखंड के हिमालय बद्रिकाश्रम ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की गद्दी को लेकर चल रहे विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और स्वामी वासुदेवानन्द दोनो को इस पीठ का शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया है। अदालत ने ज्योतिषपीठ पर दोनों का दावा खारिज कर दिया है।
जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस केजे ठाकर की डिवीजन बेंच ने 700 पन्नों का ये फैसला सुनाया है। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने दोनो संतों की इस पद के लिए हुई नियुक्ति को भी गलत माना है। डिवीजन बेंच ने तीन महीने में परंपरा के मुताबिक नया शंकराचार्य चुनने को कहा है। अब बाकी तीन पीठों के शंकराचार्य, काशी विद्वत परिषद और भारत धर्म सभा मंडल मिलकर नया शंकराचार्य तय करेंगे। हाईकोर्ट ने मामले में जिला अदालत के दो साल पुराने फैसले को रद्द करते हुए अगले तीन महीने तक यथास्थिति कायम रखने की बात कही है।
वहीं वासुदेवानन्द को सन्यासी मानने को लेकर दोनों जजों में मतभेद दिखा। जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने उन्हें सन्यासी मानने से इनकार किया जबकि जस्टिस ठाकर ने उन्हें गुरु शिष्य परंपरा में सन्यासी माना है।
हाईकोर्ट के इस फैसले से स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को बड़ा झटका लगा है। अबतक यह गद्दी स्वामी स्वरूपानंद के पास ही थी। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारका-शारदा पीठ के भी शंकराचार्य हैं।
बता दे कि इस मामले में डे टू डे बेसिस पर सुनवाई हुई है। इसके बाद बाद इसी साल तीन जनवरी को फैसला रिजर्व कर लिया गया था। जिस पीठ के लिए दोनों संतों में विवाद है वह उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में है। इसे हिन्दू धर्म में ज्योतिषपीठ कहते हैं जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी।
हाईकोर्ट के इस फैसले का शंकराचार्य होने का दावा करने वाले दोनों संतों के साथ ही इनसे जुड़े लाखों अनुयायियों को भी था। गौरतलब है कि आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में एक उत्तरखंड के जोशीमठ की ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी को लेकर विवाद देश की आज़ादी के समय से ही शुरू हो गया था।
सन 1960 से यह मामला अलग- अलग अदालतों में चला। 1989 में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के गद्दी संभालने के बाद द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उनके खिलाफ इलाहाबाद की अदालत में मुकदमा दाखिल किया और उन्हें हटाये जाने की मांग की थी।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद इलाहाबाद की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में करीब तीन साल पहले इस मामले की सुनवाई डे टू डे बेसिस पर शुरू हुई थी। निचली अदालत में दोनों तरफ से करीब पौने दो सौ गवाहों को पेश किया गया था।
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी को लेकर करीब सत्ताईस साल तक चले मुक़दमे में इलाहाबाद की जिला अदालत ने साल 2015 की 5 मई को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के हक में अपना फैसला सुनाया था और 1989 से इस पीठ के शंकराचार्य के तौर पर काम कर रहे स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की पदवी को अवैध करार देते हुए उनके काम करने पर पाबंदी लगा दी थी।
इलाहाबाद जिला अदालत के सिविल जज सीनियर डिवीजन गोपाल उपाध्याय की कोर्ट ने 308 पेज के फैसले में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की वसीयत को फर्जी करार दिया था। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी।
मामले को लेकर जल्द निपटारे की मांग की थी। इस बीच शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर मामले का निपटारा जल्द किये जाने की अपील की थी। अपनी अर्जी में उन्होंने कहा था कि उनकी उम्र बानवे साल हो गई थी, इसलिए वह चाहते हैं कि उन्हें इस मामले में जीते जी इंसाफ मिल जाए। आज इस फैसले के बाद उत्तराखंड के हरिद्वार,ऋषिकेश से लेकर जोशीमठ व बद्रीनाथ धाम समेत तमाम धार्मिक नगरों में लोगों के बीच धर्म क्षेत्र को लेकर खासी चर्चा बनी हुई है।