नयी दिल्ली। सरकार ने कहा कि एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के खिलाफ विधेयक तैयार करने में मुस्लिम संगठनों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया और यह मुद्दा लैंगिक न्याय, लैंगिक समानता और महिलाओं की गरिमा की मानवीय अवधारणा से जुड़ा हुआ है जिसमें आस्था और धर्म का कोई संबंध नहीं है।’’
सरकार से प्रश्न पूछा गया था कि क्या उसने विधेयक का मसौदा तैयार करने में मुस्लिम संगठनों के साथ विचार-विमर्श किया है जिस पर कानून राज्य मंत्री पी पी चौधरी ने ‘ना’ में जवाब दिया। एक अन्य प्रश्न के लिखित उत्तर में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘‘सरकार का मानना है कि यह मुद्दा लैंगिक न्याय, लैंगिक समानता और महिलाओं की गरिमा की मानवीय अवधारणा से जुड़ा हुआ है और इसमें आस्था और धर्म का कोई संबंध नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने एक बार में तीन तलाक को अवैध करार दिया, लेकिन इसके बाद भी ऐसे 66 मामले सामने आए हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते 15 दिसंबर को ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक’ को मंजूरी प्रदान की। इस विधेयक में तलाक देने वाले पति के लिए तीन साल की जेल और जुर्माने का प्रवधान किया गया है।