देहरादून: यह बिडंबना नहीं तो और क्या है। पंचेश्वर बांध परियोजना की जद में आने वाले पेड़ों के मद्देनजर इसी अनुपात में पौधे लगाने को दूसरे राज्यों में भूमि की तलाश हो रही, जबकि प्रदेश में 5.37 लाख हेक्टेयर भूमि ऐसी है, जिसे हरा-भरा किया जा सकता है। इसमें न सिर्फ पंचेश्वर बल्कि अन्य परियोजनाओं के लिए कटने वाले पेड़ों के एवज में पौधरोपण किया जा सकता है। ऐसे में नीति नियंताओं पर भी सवाल उठना लाजिमी है। हालांकि, अब सरकार का कहना है कि पौधरोपण के लिए पहली प्राथमिकता अपने राज्य को ही दी जाएगी।
भारत और नेपाल के बीच शारदा नदी पर 40 हजार करोड़ की लागत से प्रस्तावित पंचेश्वर बांध परियोजना की जद में उत्तराखंड की 9100 हेक्टेयर भूमि आ रही है। परियोजना के निर्माण से इसमें खड़े पेड़ों का कटान होना तय है। नियमानुसार परियोजना के जितने क्षेत्रफल से पेड़ कटेंगे, उतने ही क्षेत्रफल पर पेड़ उगाए भी जाने हैं। जाहिर है कि इसके लिए उत्तराखंड को भूमि मुहैया करानी है, मगर इस कड़ी में उप्र से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों से बात की जा रही है।
अन्य प्रदेशों में पौधरोपण के लिए भूमि तलाशना गलत नहीं है, लेकिन जब अपने पास भूमि उपलब्ध हो तो सवाल उठने लाजिमी हैं। उत्तराखंड वन विभाग की वन सांख्यिकी पर ही गौर करें तो प्रदेश में 537890 हेक्टेयर भूमि ऐसी है, जिस पर पौधरोपण किया जा सकता है। इसमें भी 1.23 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र को विशुद्ध रूप से पौधरोपण के जरिये समृद्ध किया जाना है।
वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत के अनुसार पूर्व में इस परियोजना के मद्देनजर पौधरोपण को भूमि की उपलब्धता के लिए जिलों से रिपोर्ट मांगी गई थी, जो संतोषजनक नहीं थी। संभवत: इसे देखते हुए ही अन्य राज्यों में भूमि की तलाश पर भी जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि पौधरोपण के लिए पहले प्रदेश को ही प्राथमिकता दी जाएगी। इसमें वन भूमि का उपयोग किया जाएगा।
यह है उपलब्धता
भूमि, क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)
पौधरोपण के लिए वन क्षेत्र, 123000.58
जलग्रस्त, 20859.93
बलुई-रिवर बैंक-पथरीली आदि, 76355.92
निम्न स्तरीय, 16007.23
अन्य व अवर्गीकृत, 301666.55