देहरादून: विकासनगर तहसील के तिमली गांव में जिस जमीन घोटाले की नींव वर्ष 1991 में पड़ी, उससे पर्दा अब 27 साल बाद हट पाएगा। करीब 20 बीघा जमीन घोटाले के मामले में राज्य सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल ने प्रमुख सचिव राजस्व को जांच करने को कहा है। इसे एनएच-74 घोटाले की तरह संगीन मानते हुए आयोग ने यह आदेश जारी किए।
वैसे तो यह प्रकरण वर्ष 2006 से विभिन्न शिकायतों के रूप में सामने आता रहा है, मगर आज तक जांच के नाम पर सिर्फ लीपापोती ही की जाती रही। जबकि पुलिस से लेकर प्रशासन के तमाम अधिकारियों के संज्ञान में यह मामला लाया जाता रहा है। पहली बार वर्ष 2015 में डीएल रोड निवासी अमल वर्मा ने प्रकरण की तह तक जाने के लिए आरटीआइ का सहारा लिया।
उन्होंने तिमली गांव में किए गए जमीन फजीवाड़े को लेकर विकासनगर तहसील से विभिन्न बिंदुओं पर सूचना मांगी। आशंका के अनुरूप उन्हें समुचित सूचना नहीं मिल पाई और अमल वर्मा को सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
आयोग में प्रकरण की पैरवी अमल के पति अशोक वर्मा ने की। विभिन्न सुनवाई में सामने आया कि वर्ष 1975 में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम के तहत गांव के 23 लोगों को 69 बीघा भूमि के पट्टे जारी किए गए थे। वर्ष 1990 तक सब कुछ ठीक चलता रहा, मगर वर्ष 1991 में तहसील के कार्मिकों ने मिलीभगत कर आठ लोगों की 18 बीघा भूमि के पट्टे निरस्त कर दिए। फिर अचानक जमीन के फर्जी कागजात तैयार कर चार लोगों के नाम 13 बीघा भूमि दर्ज कर दी गई और शेष भूमि पर कब्जा कर लिया गया।
इसके अलावा तहसील कार्मिकों ने जोहड़ व जंगल की करीब सात बीघा भूमि को बंजर दिखाकर उसे किसी अन्य के नाम दर्ज कर दिया गया। हालांकि, जब कब्जा देने की बारी आई तो स्थान बदलकर ग्राम समाज की भूमि पर कब्जा दे दिया गया। इस तरह किए गए फर्जीवाड़े में 20 बीघा भूमि डकार ली गई।
हालांकि, विकासनगर तहसील के लोक सूचनाधिकारी के रूप में नायब तहसीलदार ने जवाब दिया कि संबंधित भूमि के कब्जों को निरस्त किया जा रहा है। इस जवाब को नाकाफी बताते हुए राज्य सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल ने कहा कि यह मामला अत्यंत संगीन प्रतीत होता है और यह एनएच-74 जैसे घोटाले की तरह प्रतीत होता है। लिहाजा, न्यायहित में प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराया जाना उचित होगा। इसी आशय के साथ आयोग ने प्रमुख सचिव राजस्व को आदेश दिया कि वह प्रकरण की शासन स्तर पर जांच पर कराना सुनिश्चित करें।