देहरादून। माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (एमएफआइएन), एक स्व-विनामकीय संस्थान और उद्योग संगठन ने आज देहरादून में वित्तीय समावेशन पर राज्य के पहले सम्मेलन का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का मुख्य विषय था ‘‘उत्तराखंड में वित्तीय समावेशन की प्रगति और परिदृश्य‘‘। अमित सिंह नेगी, सचिव (फाइनेंस) ने सम्मेलन में विशेष संबोधन दिया।
इस सम्मेलन का उद्देश्य राज्य में वित्तीय समावेशन की स्थिति का विश्लेषण करना था। साथ ही इसमें मौजूद चुनौतियों एवं अवसरों पर भी चर्चा की गई। वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में माइक्रोफाइनेंस एवं फिनटेक की भूमिका पर भी विचार-विमर्श हुआ। सुब्रत दास, प्रादेशिक निदेशक, आरबीआई देहरादून और डी.एन. मागर, सीजीएम नाबार्ड, उत्तराखंड सम्मेलन में पैनलिस्ट के तौर पर उपस्थित हुये। पैनल में शामिल होने वाले अन्य लोगों में राकेश दुबे, प्रेसिडेंट, एमएफआइएन और देवेश सचदेव, वाइस प्रेसिडेंट, एमएफआइएन थे। अमित सिंह नेगी, सेक्रेटरी (फाइनेंस), उत्तराखंड के कहा की प्रति व्यक्ति की आय में भढ़ोतरी हुई है। उन्होंने यह भी कहा की पहाड़ी इलाकों में असमानताएं हैं जिन्हें दूर किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा की असमानताएं को सर्विस सेक्टर को भरावा दे कर दूर कियाजा सकता है। उन्होंने यह भी कहा की पहाड़ी इलाकों में महिलाओं का बड़ा योगदान है। इसीलिए जब हम फाइनेंसियल इन्क्लूसिव की बातकरते हैं तो हम महिलाओं को महत्पूर्ण स्थान देते हैं।‘ राकेश दुबे, एमएफआइएन के प्रेसिडेंट के अनुसार, ‘‘एनबीएफसी-एमएफआइज, स्मॉल फाइनेंस बैंक और बैंकों जैसे वित्तीय संस्थानों ने राज्य में सरकार के वित्तीय समावेशन एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, सबसे नया राज्य होने के बावजूद, उत्तराखंड वर्तमान में वित्तीय समावेशन के मामले में देश में 12वें स्थान पर है। हालांकि, यहां खासतौर से पहाड़ी जिलों में जहां 70 प्रतिशत आबादी निवास करती है, वित्तीय सेवाओं तक आसान पहुंच अभी भी उपलब्ध नहीं है, इस जरूरत को पूरा किया जाना जरूरी है। वित्तीय संस्थानों और लोगों दोनों द्वारा कई बाधाओं का सामना किया जा रहा है, जैसेकि सेवायें प्रदान करने में आने वाला अधिक खर्च और वित्तीय साक्षरता का अभाव आदि। इसके लिए खोजपरक समाधानों की जरूरत है। फिनटेक इन कठिनाईयों से पार पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।‘‘माइक्रोफाइनेंस की भूमिका के बारे में उन्होंने आगे कहा, ‘‘राज्य में 35 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है। माइक्रोफाइनेंस इस वर्ग के लिए औपचारिक ऋण का महत्वपूर्ण स्रोत है और यह बिना गिरवी के लोन उपलब्ध कराता है। यहां तक कि, मुद्रा एनबीएफसी-एमएफआइ का इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण चैनल के तौर पर करता है ताकि शिशु कैटेगरी लोन के जरिये इन ग्राहकों तक पहुंचा जा सके। उत्तराखंड में, शिशु कैटेगरी लोन के तहत मुद्रा ने लगभग 500 करोड़ रूपये का लोन बांटा है। इसमें से, एनबीएफसी-एमएफआइ और स्मॉल फाइनेंस बैंकों ने साथ मिलकर कम आय वर्ग वाले ग्राहकों को 275 करोड़ रूपये के लोन वितरित किये हैं।‘‘
उत्तराखंड में 31 नियमित वित्तीय संस्थान है जिसमें 10 एनबीएफसी-एमएफआइ और 3 स्मॉल फाइनेंस बैंक शामिल हैं। एनबीएफसी-एमएफआइ का सकल लोन पोर्टफोलियो 327 करोड़ रूपये का है और यह 2 लाख घरों की जरूरतों को पूरा करते हैं। उत्तराखंड में वित्तीय समावेशन को राज्य में काम कर रहे बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, एसएचजी और सहकारी बैंकों का भी सहयोग मिला है। इस सम्मेलन में एनबीएफसी-एमएफआइ, स्मॉल फाइनेंस बैंक, क्षेत्रीय बैंकों के प्रतिनिधि और नीति निर्माताओं आदि ने शिरकत की। इस सम्मेलन में आने वाले प्रमुख वक्ताओं में शामिल थे रमेश कुमार पंत, एजीएम एसएलबीसी उत्तराखंड, एन.के. मैनी, बोर्ड सदस्य मुद्रा एंड एमएफआइएन और पूर्व डीएमडी, सिडबी; संजय अग्रवाल, चेयरमैन, उत्तराखंड ग्रामीण बैंक; नवनीत कुमार, वीपी, वित्तीय समावेशन एवं नये व्यावसाय, नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआइ) ; श्रीदेव वर्मा, सीओओ, सैटिन क्रेडिटकेयर नेटवर्क लिमिटेड; गोविंद सिंह, एमडी, उत्कर्ष स्मॉल फाइनेंस बैंक और सुबीर कुमार मुखर्जी, डीजीएम, एसबीआइ देहरादून। यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज इस सम्मलेन का नॉलेज पार्टनर था द्य डॉ. दीपांकर छाबरा, डॉ. सुमीत गुप्ता और डॉ. विनययूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज के तरफ से इस सम्मलेन में शामिल थे।