सरकारी शिक्षा प्रणाली और पलायन की वजह से विद्यालयों पर पड़े ताले

पौड़ी गढ़वाल: अंग्रेजी हुकूमत के दौर में खुले जिस प्राथमिक विद्यालय ग्वाड़खाल में कभी दो पालियों में पांच-पांच सौ बच्चे अध्ययन किया करते थे, वह छात्र संख्या शून्य होने के कारण इस वर्ष बंद हो गया। वैसे तो पौड़ी जिले के एकेश्वर ब्लॉक में इस वर्ष पांच प्राथमिक व एक उच्च प्राथमिक विद्यालय पर ताले पड़े, लेकिन सदी के गवाह रहे प्रावि ग्वाड़खाल का बंद होना सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है। इस विद्यालय के बंद होने का दोष जहां कुछ ग्रामीण सरकारी शिक्षा प्रणाली को दे रहे हैं, वहीं कुछ ग्रामीण इसे पलायन की परिणति बता रहे हैं।

प्राथमिक विद्यालय ग्वाड़खाल की नींव वर्ष 1920 में रखी गई थी। मिट्टी-पत्थर से बने इस विद्यालय में तब ग्वाड़, थापली, सकिंडा, लछवाड़, बौंसली, बमोली, जैतोलस्यूं, देधार, नौदेणा, अमोठा व पाटीसैण के साथ ही कई अन्य गांवों के नौनिहाल शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे। यह वह दौर है, जब क्षेत्र में सड़कें नहीं थी, लेकिन शिक्षा की ललक नौनिहालों को पैदल ही विद्यालय तक खींच लाती थी।

छात्र-छात्राओं की बड़ी तादाद को देखते हुए तब विद्यालय दो शिफ्ट में चला करता था। सुबह की शिफ्ट में दूर-दराज के गांवों से आए बच्चे अध्ययन करते तो शाम की शिफ्ट में आसपास के गांवों के। ग्राम ग्वाड़ निवासी बुजुर्ग बचन सिंह बिष्ट बताते हैं कि विद्यालय में एक शिफ्ट में पांच सौ से अधिक बच्चे होते थे।

देश आजाद हुआ और धीरे-धीरे पहाड़ों में जगह-जगह विद्यालय खुलने का सिलसिला शुरू हो गया। वर्तमान में तो प्रत्येक ग्रामसभा में प्राथमिक विद्यालय है। ग्रामसभा बमोली के बुजुर्ग माणिक लाल चतुर्वेदी वर्तमान परिस्थितियों के लिए सरकारी नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं। कहते हैं, उस दौर में शिक्षा गुणवत्तापरक हुआ करती थी और शिक्षकों को भी अपने कर्तव्य का बोध था। नतीजा, बच्चों में शिक्षा पाने की ललक हुआ करती थी। लेकिन, आज स्थितियां पूरी तरह उलट हैं। सुविधाओं के बावजूद न शिक्षकों में पढ़ाने की ललक है और न विद्यार्थियों में पढ़ने की ही।

ग्रामीण भूपेंद्र सिंह थापा बताते हैं कि विद्यालयों के साथ ही अधिकारियों की फौज तो खड़ी कर दी गई है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने को कभी गंभीर प्रयास नहीं किए जाते। नतीजा, दो बच्चों पर दो शिक्षक होने के बावजूद पढ़ाई का स्तर ऊपर नहीं उठ पा रहा।

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