नई दिल्ली। संसद का मानूसन सत्र सोमवार से शुरू हो गया है। लेकिन राज्यसभा में उपसभापति का मामला अधर में ही लटका है। इस मामले में सत्तापक्ष या विपक्ष के बीच अब तक आमराय नहीं बन सकी है। उच्च सदन में किसी भी दल का बहुमत नहीं होने के कारण पेच फंस गया है। सत्तारूढ़ गठबंधन के पास बहुमत नहीं है तो वहीं विपक्षी दलों में भी आपसी सहमति नहीं हैं। ऐसे में आमराय बनाने की डगर सबके लिए मुश्किल हो रही है। आइए जानते हैं सत्ता पक्ष और विपक्ष की क्या है रणनीति।
उपसभापति के चयन का मामला फंसा
इस माह कांग्रेस के नेता और राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल समाप्त हो गया है। कांग्रेस ने उन्हें दोबारा मनोनीत नहीं किया है, इसलिए ऐसी स्थिति में उपसभापति का चयन किया जाना अनिवार्य है। भाजपा चाहती है कि उपसभापति भी उसके घटक दल का हो, यानी जिसमें पार्टी के प्रति आस्था हो। लेकिन, उच्च सदन में बहुमत नहीं होने के चलते भाजपा का यह मनोरथ पूरा नहीं हो पा रहा है। उधर, कांग्रेस समेत सभी क्षेत्रीय दलों में एकजुटता का बड़ा अभाव है।
आखिर क्या है भाजपा की रणनीति
उपसभापति के मामले में केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की रणनीति है कि एनडीए के किसी घटक दल के व्यक्ति का नाम आगे किया जाए और विपक्ष की उस पर सहमति बनाई जाए। वह सीधे-सीधे उपसभापति के मामले में पार्टी के किसी व्यक्ति को खड़ा करने में दिलचस्पी नहीं रखती। हां, इतना जरूर है कि उपसभापति की कुर्सी पर अपने दखल को जरूर कायम रखना चाहती है। इसे लेकर पार्टी ने कवायद भी शुरू कर दी है। इस बाबत शिरोमणि अकाली दल के सदस्य नरेश गुजराल के नाम पर चर्चा शुरू हुई, लेकिन उनके नाम पर पार्टी के नेताओं के बीच सहमति नहीं बन सकी।
केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा अपने घटक दलों के सहारे भी बहुमत नहीं हासिल कर सकती है। लोकसभा की तरह राज्यसभा में उसका बहुमत नहीं है। इसलिए पार्टी नरेश गुजराल के नाम को आगे बढ़ा रही है। भाजपा को लगता है कि नरेश गुजराल के नाम पर बीजू जनता दल और दूसरे अन्य दलों का समर्थन उसे मिल सकता है। भाजपा की यह सोच बेबुनियाद नहीं है। दरअसल, बीजू जनता दल के नेता और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और नरेश गुजराल की कमेस्ट्री काफी अच्छी है। दोनों आपस में घनिष्ठ मित्र हैं। सियासी पारी शुरू करने के पहले दोनों नेताओं ने संयुक्त रूप से व्यापार भी किया था। इसके अलावा दोनों की सियासी पृष्ठभूमि काफी मिलती-जुलती है।
कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का स्टैंड
विपक्षी दल चाहते हैं कि उपसभापति कोई गैर भाजपाई या एनडीए से अलग दल का हो। लेकिन विपक्ष भी किसी एक नाम को लेकर अब तक आमराय नहीं बन पाई है। इसको लेकर भी आम सहमति बनाने की कोशिश की गई। इस बाबत चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू, कर्नाटक के एचडी कुमारस्वामी और केरल के पिनाराई विजयन) की दिल्ली में बैठक भी हुई लेकिन यह बेनतीजा ही रही। वहीं, विपक्ष की तरफ से तृणमूल कांग्रेस के सदस्य सुखेंदु शेखर राय के नाम पर चर्चा चल रही है। लेकिन वाम दल इनका समर्थन करेंगे, यह मुश्किल ही है।
कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा में 50 सदस्य हैं। ऐसे में साफ है कि उच्च सदन में उसका बहुमत नहीं है। इसलिए वह अकेले दम पर उपसभापति का नाम नहीं थाेप सकती है। उसके प्रत्याशी को क्षेत्रीय दल सहयोग करेंगे इसकी भी गारंटी नहीं है।
उच्च सदन में प्रमुख दलों की स्थिति
1- भाजपा : 69
2- कांग्रेस : 50
3- एआईएडीएमके : 13
4- तृणमूल कांग्रेस : 13
5- समाजवादी पार्टी 13
6- बीजेडी : 09
7- जनता दल (युनाईटेड) : 0 6
8 – टीडीपी: 0 6
9- टीआरएस: 0 6
10- सीपीआई (एम): 05
11- डीएमके : 04
12- बसपा : 04
13- एनसीपी: 0 4
14- आप : 03
15- शिरोमणि अकाली दल: 03
16- शिव सेना: 0 3