देहरादून: स्कूली बच्चों के परिवहन को लेकर स्थिति विकट होती जा रही है। राज्य सरकार व परिवहन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन व हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देकर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। वहीं, निजी स्कूली वाहनों का संचालन बंद करने के निर्णय से हजारों अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है। सोमवार को आटो संचालकों ने बच्चों का परिवहन बंद कर दिया। हालांकि, शहर में स्कूली वाहनों का परिवहन करने वाले डेढ़ हजार आटो में से करीब 100 आटो चलते भी दिखे, लेकिन यह संख्या नाकाफी रही। हजारों अभिभावकों और बच्चों ने परेशानी झेली व जैसे-तैसे दूसरे विकल्पों से बच्चे स्कूल पहुंचे। आटो को लेकर गफलत की स्थिति अभी कायम है, उधर सोमवार शाम आपात बैठक कर स्कूल वैन एसोसिएशन ने भी बुधवार से करीब 450 वैन संचालन बंद करने का फैसला लिया। यानी बुधवार से बच्चे कैसे स्कूल जाएंगे, इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं। वहीं, आज स्कूलों में ऑटो भी नहीं चले। सुबह अभिभावकों ने अपने विकल्पों से बच्चों को स्कूल छोड़ा।
हाईकोर्ट ने परिवहन विभाग को स्कूली वाहनों का संचालन उसी सूरत में करने के आदेश हैं, जब वे सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय नियमों व मानकों का पालन करें। इसे लेकर विभाग ने एक अगस्त से ऐसे सभी स्कूली वाहन पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया हुआ है, जो मानक पूरे नहीं कर रहे। चूंकि, शहर में दस फीसद स्कूलों के पास ही अपनी बसें हैं। साथ ही स्कूल वैन भी सीमित संख्या में पंजीकृत हैं। विकल्प नहीं होने के कारण हजारों बच्चे निजी बुक की हुई बस, वैन, आटो व विक्रम में परिवहन करते हैं। कार्रवाई के डर पर आटो यूनियन ने सोमवार से बच्चों का परिवहन बंद कर दिया। वहीं, स्कूल वैन एसोसिएशन ने भी शिवाजी धर्मशाला में बैठक कर बुधवार से संचालन बंद करने का निर्णय ले लिया है। सोमवार को जिस तरह अभिभावकों और बच्चों ने परेशानी झेली और दूसरे विकल्पों के जरिए बच्चों को स्कूल छोड़ा, उससे ये साफ है कि आने वाले दिनों में उनके लिए मुसीबत और बढ़ने वाली है।
स्कूली वाहनों में सीटिंग मानक
एआरटीओ अरविंद पांडे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन के अनुसार स्कूली वाहन में पांच से 12 साल तक के बच्चों को एक यात्री पर आधी सवारी माना जाता है। स्कूल वैन में आठ सीट होती हैं। एक सीट चालक की और सात बच्चों की। सात बच्चों का आधा यानी साढ़े तीन बच्चे (यानी चार)। कुल मिलाकर वैन में पांच से 12 साल तक के 11 बच्चे ले जाए जा सकते हैं। इसी तरह बस अगर 34 सीट की है तो उसमें पांच से 12 साल के 50 बच्चे ले जाए सकते हैं।
पांच साल तक के बच्चे हैं मुफ्त
सुप्रीम कोर्ट की गाइड-लाइन में स्कूली वाहनों में पांच साल तक के बच्चों को मुफ्त ले जाने का प्रावधान है। तय नियम में स्पष्ट है कि ये बच्चे सीट की गिनती में नहीं आते। इसी नियम का फायदा उठाकर वाहन संचालक ओवरलोडिंग करते हैं और चेकिंग में पकड़े जाने पर आधे बच्चों की उम्र पांच साल से कम बताते हैं। यही नहीं कहीं पर भी पांच साल तक के बच्चों को मुफ्त ले जाने के नियम का अनुपालन नहीं किया जाता।
आटो-विक्रम में दरवाजे लगाना जरूरी, तब करें परिवहन
एआरटीओ के मुताबिक आटो व विक्रम भी स्कूली बच्चों को ले जा सकते हैं मगर इनमें दरवाजे लगाना जरूरी है। खिड़की पर रॉड या जाली लगानी होगी। साथ ही सीट की तय संख्या का पालन करना होगा। जैसे आटो में तीन सवारी के बदले पांच से 12 साल के सिर्फ पांच बच्चे सफर कर सकते हैं। विक्रम में छह सवारी के बदले उपरोक्त उम्र के नौ बच्चे ले जाए जा सकते हैं। इस दौरान शर्त यह भी है कि चालक के बगल में अगली सीट पर कोई नहीं बैठेगा। अगर इन मानकों को आटो-विक्रम पूरा नहीं कर रहे तो बच्चों के परिवहन में अभिभावकों का साथ होना जरूरी है।
एसोसिएशनों में हुई दो फाड़
वाहन संचालन को लेकर स्कूल वैन व आटो यूनियनों में दो फाड़ हो गई है। एक आटो यूनियन तय संख्या में बच्चे ले जाने की बात कर रही है तो दूसरी ने बच्चों का परिवहन करने से साफ मना कर दिया है। एक यूनियन के अध्यक्ष बालेंद्र तोमर का दावा है कि उनकी एआरटीओ से बात हो गई है और तय नियमों पर आटो में बच्चे ले जाए जा सकते हैं। वहीं, दूसरी यूनियन के अध्यक्ष पंकज अरोड़ा का कहना है कि परिवहन विभाग ने कोई छूट नहीं दी है व आटो में बच्चे नहीं ले जाए जाएंगे। दूसरी तरफ, उत्तराखंड स्कूल वैन एसोसिएशन व दून स्कूल वैन एसोसिएशन में भी दो फाड़ हो गए हैं। उत्तराखंड एसो. ने तय मानकों पर बच्चों का परिवहन करने की हामी भर दी है, जबकि दून एसो. ने बच्चों को लाने से इन्कार कर दिया है। ऐसे में अभिभावक गफलत में हैं कि करें तो करें क्या।
ई-रिक्शा पर क्यों मेहरबानी
परिवहन विभाग ने सभी निजी स्कूली वाहनों पर प्रतिबंध तो लगा दिया है मगर ई-रिक्शा पर मेहरबानी जारी है। सोमवार को आटो न चलने के कारण ई-रिक्शा में बच्चों को भेड़-बकरियों की तरफ ढोया गया। रिक्शा चालकों ने मनमाना किराया वसूला, लेकिन विभाग नजरें फेरे रहा।
कुछ आटो व वैन चालक अभिभावकों को कर रहे गुमराह
अरविंद पांडे (एआरटीओ) का कहना है कि कुछ आटो व वैन चालक अभिभावकों को गुमराह कर रहे हैं कि परिवहन विभाग जानबूझकर ऐसा कर रहा। ऐसा कुछ नहीं है। हम कह रहे कि मानक पूरा करो और वाहन चलाओ। इसमें परेशानी क्या होगी। आखिर अभिभावकों को भी समझना होगा कि ओवरलोडिंग उनके बच्चों की सुरक्षा के लिए भी खतरा है। परिवहन विभाग की ओर से स्कूल कैब योजना शुरू की गई है जिसमें वैन से आधा टैक्स लिया जा रहा। बसों का टैक्स भी आधा करने की कसरत चल रही। स्कूलों को चाहिए कि वे बसों व स्कूल कैब वैन का प्रयोग करें।
बस्तियों पर ले आए अध्यादेश यहां क्यों बैकफुट पर सरकार
दून शहर में स्कूली वाहनों पर चल रही खींचतान पर राज्य सरकार सवालों में घिरी हुई है। अहम और बड़ा सवाल यह है कि सरकार मलिन बस्तियों को लेकर हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध अध्यादेश ला सकती है, लेकिन हजारों अभिभावकों और बच्चों की परेशानी से सरकार हाथ खींच रही है। जिस तरह से सरकार ने स्कूली वाहनों का मामला सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के पाले में सरका दिया, उससे साफ है कि सरकार को सिर्फ बस्तियों के वोटबैंक की ही चिंता है। भाजपा के चार विधायक बस्तियों को टूटने से बचाने के लिए सड़क पर आ सकते हैं, लेकिन हजारों बच्चों की परेशानी वह देख नहीं पा रहे, यह भी बड़ा सवाल है।
सोमवार को सरकार व परिवहन विभाग की ओर से एक सार्वजनिक पत्र जारी करते हुए यह बताया गया कि स्कूली वाहनों को लेकर की जा रही सख्ती, राज्य सरकार का नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का फैसला है। परिवहन विभाग ने स्पष्ट किया कि बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से भी बच्चों की सुरक्षा को लेकर वाहन में मानक पूरे करने के आदेश दिए हैं। विभाग के अनुसार निर्धारित मानक वाले वाहनों के परिवहन में विभाग का कोई हस्तक्षेप नहीं है। विभाग उन्हीं वाहनों के विरुद्ध कार्रवाई कर रहा है, जो स्कूली वाहन के तय मानक पूरे नहीं करते। विभाग भी अच्छे से जानता है कि स्कूली वाहनों के मानक पूरे कर रहे वाहनों की संख्या महज दस फीसद ही है। बाकी वाहन वैकल्पिक सुविधा के तौर पर संचालित हो रहे, लेकिन अब अभिभावकों से यह विकल्प छीना जा रहा। रही, सरकार और भाजपा विधायक, उन्हें सिर्फ बस्तियों की चिंता है, बच्चों की नहीं।
स्कूलों को बाध्य करे सरकार, एडमिशन पॉलिसी का कराए पालन
स्कूल बसें या वैन लगाने को लेकर अब तक किसी सरकार ने स्कूलों पर दबाव नहीं बनाया। राज्य में सरकार चाहे कांग्रेस की रही या फिर भाजपा की। वाहन का दबाव बनाना तो दूर सरकारों ने एडमिशन पॉलिसी तक लागू नहीं कराई। पॉलिसी के अनुसार स्कूलों को अपने समीप के निवासी बच्चों को एडमिशन में प्राथमिकता देनी होती है। ऐसा इसलिए, ताकि बच्चों को परिवहन की सुविधा में दिक्कत न हो। बच्चे आराम से पैदल भी आ सकते हैं, लेकिन मोटी फीस वसूलने वाले निजी स्कूल तो पॉलिसी की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ऊपर से सरकार भी इन पर ‘मेहरबान’ ही नजर आती है।