नैनीताल: जिंदगी में कुछ पड़ाव ऐसे आ जाते हैं जब आगे का कोई रास्ता नहीं सूझता है। जैसे पूरा भविष्य अंधेरे में कहीं गुम हो गया हो। यहीं से शुरू होती है जिंदगी की असली परीक्षा। जो लड़खड़ा जाते हैं उनकी पूरी जिंदगी उठने में गुजर जाती है और जो झंझावतों को झेलते हुए जीजान से सकारात्मक रुख अपनाते हुए अपना मुकाम हासिल करने में जुट जाते हैं, उनकी मिसाल दी जाती है। चलिए आपको एक ऐसे ही मिसाल की कहानी बताते हैं।कहानी है उत्तराखंड की पहली महिला ई-रिक्शा चालक के तौर पर पहचान बनाने वाली रानी मैसी की, जो आधी आबादी के लिए नजीर बन चुकी हैं। वह कहती हैं कि ढाई साल पहले अगर मैंने साहस नहीं दिखाया होता तो वह आज भी गुमनाम होती। परिवार पहले की तरह मुश्किलों में होता। बेटी की पढ़ाई पूरी हो पाती या नहीं, यह कहते हुए उनका गला भर आता है।गांधी नगर वार्ड एक निवासी 45 वर्षीय रानी मैसी के पति बबलू मैसी माली थे। तीन साल पहले एक दिन गिरने से उनके सिर पर चोट लग गई। दिमागी चोट के कारण अक्सर उन्हें चक्कर आ जाता। शहर के निजी अस्पताल में इलाज चला। महीने की हजार-बारह सौ की दवा का खर्च उठाना परिवार पर भारी पड़ रहा था। इकलौती बेटी मोहिनी ने कुछ माह पहले ही मुरादाबाद के नर्सिंग कॉलेज में दाखिला लिया था। परिवार के एकमात्र कमाऊ व्यक्ति के बिस्तर पकडऩे से परिवार आर्थिक संकट से घिर गया। ऐसे में रानी ने परिवार को संकटों से उबारने का जिम्मा खुद उठाया।आज रानी ई-रिक्शा की एजेंसी व सर्विस सेंटर चला रही हैं। देवर, एक कारीगर व एक युवती दुकान पर रहते हैं। जीएनएम की पढ़ाई पूरी कर चुकी मोहिनी ट्रेनिंग कर रही है। रानी के लिए यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था।