बागियों के आगे बेबस कांग्रेस नेतृत्व

देहरादून। भाजपा के दांव से चारों खाने चित्त हो चुकी कांग्रेस बागियांे को लेकर भी संशय में दिखाई दे रही है। बागी विधायकों के दून पहुंचने के बाद कांग्रेस की असहजता सहज ही देखी जा सकती है। बागी राजधानी में रहकर ही हरीश रावत और कांग्रेस पर हल्ला बोल रहे हैं तो वहीं कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व बागियों पर कार्रवाई को लेकर खामोश बैठा है। जो उसकी देखो और इंतजार करो नीति का हिस्सा दिखाई दे रहा है। परंतु इस पूरे प्रकरण मंे कांग्रेस की ही छिछालेदार देखने को मिल रही है।
दून पहुंचने के बाद कांग्रेस के बागी विधायक जिस प्रकार से खम ठोक रहे हैं। वह कांग्रेस के लिए किसी भी दशा में शुभ संकेत नहीं हैं। बागी विधायक हरीश रावत सरकार की हर कारगुजारी से पर्दा उठाने का मन बना चुके हैं। जिससे कांग्रेस संगठन और सरकार के भीतर की बातों का बाहर आने का खतरा उत्पन्न हो गया है। बागियों का मानना है कि कांग्रेस में जो आतंरिक लोकतंत्र था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी उसे हरीश रावत और उनके करीबियों ने समाप्त कर दिया था। अपनी सही बात रखने पर भी नेता और कार्यकर्ताओं को दमन की चेतावनी दी जाती थी। परंतु इसमें दिलचस्प पहलू यह है कि एक ओर जहां बागी खुलकर हरीश रावत और कांग्रेस को चुनौती दे रहें हैं। तो वहीं दूसरी और कमजोर पड़ चुके हरीश रावत और कांग्रेस उनका जबाव देने का कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं। फिलहाल हालात की नजाकत को समझते हुए दोनों ने चुप्पी साधना ही बेहतर समझ रखा है। परंतु बागी तो खुलकर बैटिंग करने के मूड में दिखाई दे रहे हैं। उनके क्षेत्र में शुरू होने वाली कांग्रेस की लोकतंत्र बचाओ यात्रा को उन्होंने कांग्रेस की नौटंकी करार दिया है। बागियों का कहना है कि कांग्रेस अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। जनाधार वाले नेताओं के स्थान पर पैराशूट नेता कांग्रेस को अपनी ताकत का अहसास करा रहे हैं। जो सीधे तौर पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहा है। बागियों के तीखे तेवर और कांग्रेस का लचर रवैया कांग्रेस की ही मुसीबतों में इजाफा करने का काम कर रहा है। वैसे कांग्रेस के पास अधिक विकल्प भी नहीं हैं। कांग्रेस के भीतर कार्यकर्ताओं का एक वर्ग भी हरीश रावत सरकार से नाराज है, जिनकी सहानुभूति बागियों के साथ दिखाई देती है। इसे लेकर भी कांग्रेस चिंतित दिखाई दे रही है। परंतु देखो और इंतजार करो की नीति से अंततः उसे ही नुकसान होना तय माना जा रहा है। जिसे कांग्रेस के रणनीतिकार अभी नहीं समझ पा रहे हैं।

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