देहरादून। उत्तराखण्ड में पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार की ओर से की गई फोन टैपिंग के चलते निजता के अधिकार के हनन को लेकर सवाल उठने लगे हैं। सरकार के इस कृत्य पर लोगों में रोष देखने को मिल रहा है। सवाल उठाए जा रहे हैं कि रावत सरकार ने 378 लोगों के फोन किस आधार पर टेप किए। फोन टेप होेने वाले लोगों में नेताओं, अधिकारियों और कुछ पत्रकारों के फोन भी शामिल हैं।
राज्य की राजनीति में अब फोन टेपिंग का मामला गरमाने लगा है और इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग की जाने लगी है। भाजपा नेताओं के साथ आम आदमी भी पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार के इस कृत्य पर अंगुली उठाने लगा है। उसका मानना है कि फोन टैपिंग संविधान द्वारा दिए गए निजता के अधिकार का हनन है और फोन टैपिंग कराने वालों पर कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि भविष्य में पुनः इसकी पुनरावृत्ति न हो सके। भाजपा नेता तो इसकी जांच की मांग भी करने लगे हैं। अभी कुछ दिन पूर्व भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने कहा था कि हरीश रावत सरकार नेताओं, अधिकारियों और कुछ पत्रकारों के फोन टेप करा रही थी। इसका खुलासा आरटीआई के माध्यम से हुआ, जब इस बाबत जानकारी मांगी गई कि हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में कितने लोगों के फोन टेप कराए गए। तब जानकारी मिली कि सरकार ने 378 लोगों के फोन टेप कराए थे, जो सीधे तौर पर निजता के अधिकार का हनन था। अब इसे लेकर पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार घिरती दिखाई दे रही है। फोन टैपिंग पर हरीश रावत को जबाव देना भारी पड़ सकता है। बताया जा रहा है कि सरकार ने अपने विरोधियों को साधने के लिए फोन टैपिंग का सहारा लिया और उनके वार्तालाप के जरिए अहम जानकारी हासिल की। रावत सरकार को अंदेशा था कि कुछ नेता, अधिकारी और पत्रकार मिलकर सरकार के लिए प्रतिकूल हालात पैदा करने की कोशिश कर रहें हैं, ताकि सरकार को अस्थिर किया जा सके। परंतु तत्कालीन हरीश रावत सरकार इस क्रम में भूल गई कि फोन टैपिंग कर वह लोगों के निजता के अधिकार का हनन कर रही है। जिसका खुलासा होने पर उसके सामने मुश्किलों का अंबार लग सकता है।