नई दिल्ली : वित्तीय घाटे को काबू में रखने के प्रति आशावान सरकार ने स्पष्ट किया कि उसने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से 3.6 लाख करोड़ रुपये नहीं मांगे हैं। सिर्फ केंद्रीय बैंक के उचित आर्थिक पूंजीगत ढांचे को तय करने पर विचार का ही प्रस्ताव है। आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने शुक्रवार को ट्वीट कर कहा कि इस बारे में बेवजह भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं। राजकोषीय स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है। 2013-14 में राजकोषीय घाटे का आंकड़ा 5.1 फीसद था जिसे काफी हद तक निचले स्तर पर लाया जा चुका है। 2018-19 में इसे 3.3 फीसद पर रखने के लिए सरकार ने उधारी में 70 हजार करोड़ रुपये की कमी की है।” गर्ग के बयान को देखते हुए सरकार और आरबीआई के बीच जारी विवाद और बढ़ सकता है। आरबीआई के पूर्ण बोर्ड की 19 नवंबर को प्रस्तावित बैठक में काफी गहमागहमी के आसार हैं। इस बारे में एक अन्य ट्वीट में गर्ग ने लिखा, “अभी सिर्फ एक ही प्रस्ताव (आरबीआई की बैठक के लिए) है। वह है आरबीआई के लिए उपयुक्त पूंजी फ्रेमवर्क का निर्धारण करना।” खासतौर पर आरबीआई द्वारा रिजर्व फंड के इस्तेमाल को लेकर बोर्ड में सरकार के प्रतिनिधियों और दूसरे सदस्यों के बीच मतभेद सामने आने के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि आरबीआई के रिजर्व से भारी-भरकम राशि लेने की उसकी कोई योजना नहीं है। लेकिन इस बात के भी संकेत हैं कि सरकार आरबीआई के पास उपलब्ध रिजर्व के इस्तेमाल के नियम बदले जाने के पक्ष में है।