ऊर्जा के तीनों निगमों ने बिजली की दरों में 23 फीसद बढ़ोत्तरी का दिया प्रस्ताव

देहरादून। आम चुनाव को लेकर आचार संहिता को देखते हुए उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग फरवरी के अंत में बिजली की नई दरों का प्रस्ताव पारित करना चाहता है। इसके लिए आयोग ने कसरत भी तेज कर दी है। हालांकि, नई दरें अप्रैल माह में ही लागू होंगी। वहीं, इस बार ऊर्जा के तीनों निगमों ने बिजली की दरों में कुल 23 फीसद बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव दिया है। लेकिन, आयोग ने स्पष्ट कहा कि आमजन के हितों को ध्यान में रखते हुए दरों को घटाने पर भी विचार किया जा सकता है।

गुरुवार को आइएसबीटी के समीप स्थित विद्युत नियामक आयोग में जनसुनवाई में आयोग के अध्यक्ष सुभाष कुमार ने बिजली की नई दरों पर जनता की समस्याएं एवं सुझाव लिए। इस पर उपभोक्ताओं ने कहा कि यूपीसीएल अपनी उदासीनता के चलते हो रही घाटे की भरपाई भी उपभोक्ताओं से करता है। इस घाटे का वहन यूपीसीएल को स्वयं करना चाहिए। इसके अलावा, कनेक्शन संयोजन में भी निर्धारित सात दिन की समयावधि से अधिक समय लगने की शिकायत की। इस पर आयोग अध्यक्ष ने यूपीसीएल के अधिकारियों को सेवाओं में सुधार करने के निर्देश दिए।

उन्होंने बताया कि ऊर्जा के तीनों निगमों की ओर से 23 फीसद बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव रखा गया है, जिसमें 13 फीसद यूपीसीएल, पांच-पांच फीसद पिटकुल व यूजेवीएनएल ने रखा है। कहा कि आयोग बिजली की लागत व निर्धारित दरों का आंकलन करेगा। इसके बाद उचित दरें निर्धारित की जाएंगी। 2019 लोक सभा चुनाव के कारण आचार संहिता लग जाएगी, इस कारण बिजली की नई दरों से संबंधित प्रस्ताव को एक माह पूर्व पारित करने की योजना है।

विद्युत दरें बढ़ाई तो बंद हो जाएंगे सैंकड़ों उद्योग

उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग की जन सुनवाई के दौरान उद्योगपतियों ने पावर कारपोरेशन को ‘आईना’ दिखाया। कहा, खुद के नुकसान की भरपाई उद्योगपतियों व आमजन से करना उचित नहीं है। बिजली दरों में मनमाफिक इजाफा लोगों की जेब पर डाका डालने जैसा है। उत्तराखंड इंडस्ट्रियल वेलफेयर एसोसिएशन और इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड ने प्रस्तावित विद्युत दर बढ़ोत्तरी का कड़ा विरोध किया है। उद्योगपतियों ने उत्तराखंड पावर कारपोरेशन को सलाह दी कि वह नुकसान की भरपाई खुद करे न कि उपभोक्ताओं पर विद्युत दरों को बढ़ाकर बोझ डाला जाए।

गुरुवार को उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग की ओर से राज्य में वर्ष 2019-20 के लिए प्रस्तावित विद्युत दरों पर जन सुनवाई रखी गई। जिसमें उत्तराखंड इंडस्ट्रियल वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष अनिल मारवाह ने उद्योगपतियों का पक्ष रखते हुए कहा कि विद्युत कारपोरेशन ने जो विद्युत टैरिफ में बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव आयोग के समक्ष रखा है उसे लेकर औद्योगिक संगठनों को आपत्ति है। कहा कि नवोदित राज्य उत्तराखंड में आज तक जो भी औद्योगिक निवेश हुआ है उसके दो बड़े कारण रहे हैं, पहला यह कि यहां औद्योगिक पैकेज मिल रहा है, जबकि दूसरा अन्य राज्यों की तुलना में सस्ती विद्युत दरें। वर्तमान में औद्योगिक पैकेज में अब बहुत कुछ नहीं रह गया है।

केवल सस्ती दरों में विद्युत मिलने के कारण राज्य निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प है। लेकिन, अब विद्युत दरों में बढ़ोत्तरी की गई तो इसका सीधा असर एमएसएमई सेक्टर के उद्योगों पर पड़ेगा। इस दौरान उत्तराखंड इंडस्ट्रियल वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव पवन अग्रवाल, संरक्षक महेश शर्मा, उपाध्यक्ष सुनील उनियाल, कोषाध्यक्ष अंकुर सिंघल आदि मौजूद रहे।

आयोग के समक्ष रखे यह सुझाव 

  • पावर कारपोरेशन का प्रस्तावित घाटा 883.41 करोड़ दिखाया गया है। इसकी भरपाई के लिए विद्युत दरें बढ़ाना न्यायोचित नहीं है।
  • कारपोरेशन अपने ट्रांसमीशन, वितरण, बिजली चोरी, लाइन लॉस व अपने खर्चो में नियंत्रण रखें तो दरों को बढ़ाने की आवश्यकता नहीं।
  • प्रदेश में विद्युत वितरण नुकसान जो पावर कारपोरेशन ने दिखाया है उससे कई ज्यादा है। ऊर्जा निगम को इसे रोकने के प्रयास करने होंगे।
  • आरटीएस-पांच (उद्योगों) की श्रेणी में फिक्स चार्जेज को 145 रुपये से बढ़ाकर 165 रुपये के प्रस्ताव का एसोसिएशन विरोध करती है।
  • मंदी की मार झेल रहे एमएसएमई सेक्टर को फिक्स चार्जेज से मुक्त किया जाए। -उत्तराखंड में औद्योगिक विकास को बढ़ाने के लिए पहले से लगे उद्योगों व प्रस्तावित उद्योगों के लिए सब्सिडी का प्रावधान किया जाए।
  • एमएसएमई सेक्टर को विद्युत दरों में इनसेंटिव का एक पैकेज दिया जाए।कारपोरेशन उद्योगों पर न डाले बोझ

    पंकज गुप्ता विद्युत नियामक आयोग के समक्ष इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के अध्यक्ष पंकज गुप्ता ने विद्युत दरें बढ़ाए बिना भी घाटा कम करने के सुझाव रखे। कहा कि पावर कारपोरेशन जब तक सर्विस ठीक नहीं करेगा, तब तक इसका भार उपभोक्ताओं पर पड़ता रहेगा। बड़े बकायेदारों से रिकवरी की जाए न कि उसकी भरपाई विद्युत दरों के रेट बढ़ाकर करें। विभाग के कर्मचारियों को फ्री में बिजली देने से जो करीब नौ करोड़ रुपये लंबित हैं, उसकी वसूली कर्मचारियों से ही की जाए न कि उपभोक्ताओं पर इसे थोपा जाए।

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