नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह सीबीआइ के अंतरिम निदेशक की नियुक्ति के ‘खिलाफ’ है और केंद्र को ‘तत्काल’ जांच एजेंसी के नियमित निदेशक की नियुक्ति करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ निदेशक का पद संवेदनशील और महत्वपूर्ण है और लंबे समय तक इस पद पर अंतरिम निदेशक को रखना अच्छी बात नहीं है। पीठ ने सरकार से यह भी जानना चाहा कि आखिर अभी तक उसने इस पद पर नियमित नियुक्ति क्यों नहीं की? जस्टिस अरुण मिश्र और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बताया कि सीबीआइ के नए निदेशक के चयन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति की शुक्रवार को बैठक होनी है। इस पर पीठ ने वेणुगोपाल से कहा, ‘हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि आपको सीबीआइ निदेशक की तत्काल नियुक्त करनी चाहिए। यह सब अक्टूबर से चल रहा है। आप पहले से ही जानते थे कि पूर्व निदेशक आलोक वर्मा जनवरी में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। ऐसे में अब तक आपको नया निदेशक नियुक्त कर देना चाहिए था।’ कोर्ट ने यह टिप्पणी एम नागेश्वर राव को सीबीआइ का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाले गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘कॉमन कॉज’ की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। एनजीओ की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि दो-तीन सप्ताह में सीबीआइ से 40 अधिकारियों का तबादला किया जा चुका है। इस पर पीठ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि सीबीआइ निदेशक पद पर नियुक्त होने वाले अधिकारी को नागेश्वर राव द्वारा अंतरिम निदेशक का पदभार ग्रहण करने के बाद लिए गए फैसलों की ही जांच नहीं करनी चाहिए, बल्कि निदेशक पद पर बहाली के बाद आलोक वर्मा ने दो दिन के लिए पदभार ग्रहण किया था उस दौरान हुई ‘फाइलों की आवाजाही’ का भी पता लगाना चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने पीठ को यह भी बताया कि केंद्र ने एम नागेश्वर राव को अंतरिम सीबीआइ निदेशक नियुक्त करने से पहले उच्चाधिकार प्राप्त समिति की मंजूरी ली थी। अटॉर्नी जनरल द्वारा समिति की शुक्रवार को बैठक के बारे में जानकारी देने के बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई छह फरवरी तक स्थगित कर दी। समिति की 24 जनवरी को बैठक हुई थी। इस दौरान अटॉर्नी जनरल ने सीलबंद लिफाफे में उच्चाधिकार प्राप्त समिति की पिछली बैठक का विवरण पेश किया। चयन समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता और प्रधान न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित शीर्ष अदालत के न्यायाधीश शामिल हैं। केंद्रीय जांच के अंतरिम निदेशक के रूप में नागेश्वर राव की नियुक्ति को चुनौती देने वाली इस याचिका पर सुनवाई से तीन न्यायाधीश पहले ही खुद को अलग कर चुके हैं। इसके बाद न्यायमूर्ति मिश्र और न्यायमूर्ति सिन्हा की पीठ का गठन किया गया है।