नैनीताल । हाई कोर्ट ने मृत आश्रित कोटे में शामिल विवाहित पुत्रियों को सरकारी नौकरी दिए जाने के मामले में अहम फैसला दिया है। मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली लार्जर बेंच ने विवाहित पुत्री को परिवार का सदस्य माना है। कोर्ट ने साफ किया कि वह भी मृत आश्रित कोटे में नौकरी दिए जाने का अधिकार रखती है।मुख्य न्यायधीश रमेश रंगनाथन, न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की फुल बेंच में हुई। चमोली निवासी संंतोष किमोठी की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में उन्होंने कहा था कि उनके पिता ने सेवाकाल के दौरान ही उनकी शादी कर दी थी। शादी के कुछ समय बाद ही पिता की आकस्मिक मौत हो गई।पैतृक गृह में पिता के अलावा कोई भी वरिष्ठ व्यक्ति कमाई करने वाला नहीं है। जिसके कारण उनके परिजनों की सही से देखभाल नहीं हो पा रही है।संतोष ने मृत आश्रित कोटे की नौकरी उनको दिए जाने की याचिका दायर की थी। जिसमें माननीय हाई की एकलपीठ ने सरकार को आदेश दिए थे कि विवाहित पुत्रियों को भी सरकारी नौकरियों में परिवार की देखभाल के लिए मृत आश्रित कोटे की नौकरी दी जाए। जिसके खिलाफ सरकार ने विशेष अपील दायर की। एकलपीठ के इस आदेश को मुख्य न्यायधीश ने सुनवाई के लिए लार्जर बेंच को रेफर कर दिया था। जिसमें कहा गया कि विवाहित पुत्रियों को सरकारी नौकरी दी जाए या नही? इसपर बुधवार को मुख्य न्यायधीश की लार्जर खंंडपीठ ने सुनवाई करते हुए फैसले को सुरक्षित रख लिया है।याचिका में दो महत्वपूर्ण बिंदू सामने आये थे। पहला कि क्या विवाहित पुत्री परिवार का सदस्य है? दूसरा बिंदु ये था कि वह क्या मृत आश्रित कोटे से सरकारी नौकरी पाने की हकदार है या नहीं। इस पर मुख्य न्यायधीश ने इस मामले को लार्जर बेंच के लिए भेज दिया था। जिस पर पूर्व में मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली लार्जर बेंच ने निर्णय को सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने अपने इस निर्णय में उपरोक्त आदेश दिया ।