देहरादून। हेपेटाइटिस-सी की गिरफ्त में आए लोगों को अब प्रदेश में मुफ्त इलाज मिल सकेगा। रोगियों की महंगी हेपेटाइटिस-सी की जांचें और दवाओं की व्यवस्था निश्शुल्क की जाएंगी। मौजूदा समय में इसके इलाज में 40-50 हजार रुपये खर्च आता है।हेपेटाइटिस-सी रोग के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। अलग-अलग अध्ययनों के मुताबिक, परेशानी की बात यह है कि अभी तक जो संक्रमित मरीज मिले हैं, उनमें 90 प्रतिशत को रोग के बारे में तब पता चला जब किसी और इलाज के लिए उनकी खून की जांच कराई गई।यह वायरस खून के जरिये शरीर में जाकर धीरे-धीरे लिवर की कोशिकाओं को नष्ट करता है। जब रोगी को लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर होता है तो बीमारी पकड़ में आती है। इसका इलाज इतना महंगा है कि बहुत से रोगी इलाज ही नहीं करा पाते। यहां गौर करने वाली बात यह है कि पांच साल पहले तक इलाज में चार से आठ लाख रुपये खर्च आता था।बाद में, भारतीय कंपनियों के दवाएं बनाने के बाद इलाज का खर्च कम हो गया। हेपेटाइटिस-सी के मरीजों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर केंद्र सरकार एचआइवी के एआरटी सेंटर की तर्ज पर इस रोग के इलाज के लिए सेंटर शुरू कर रही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत संचालित मॉडल ट्रीटमेंट सेंटर पर न केवल मरीजों की स्क्रीनिंग, बल्कि उनका उपचार भी किया जाएगा। एचआइवी, पोलियो और टीबी उन्मूलन के तर्ज पर नेशनल वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम चलेगा।यहां उल्लेखनीय है कि गत वर्ष जुलाई-अगस्त में लक्सर के हस्तमौली गांव में हेपेटाइटिस-सी का संक्रमण कहर बनकर टूटा था। दो सौ से अधिक मरीजों के इसकी चपेट में आने से विभाग के भी हाथ-पांव फूल गए थे। यहां तक की खानपुर विधायक कुंवर प्रणव चैम्प्यिन ने मामला विधानसभा तक में उठाया था।अब नेशनल वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत प्रदेश में मरीजों को निश्शुल्क इलाज देने की व्यवस्था की जा रही है। एनएचएम के मिशन निदेशक युगल किशोर पंत ने आचार संहिता की बात कहकर इस पर कोई टिप्पणी तो नहीं की, हां इसकी पुष्टि जरूर उन्होंने की है।हेपेटाइटिस-सी संक्रमित खून से फैलता है। असुरक्षित यौन संबंधों के अलावा संक्रमित खून चढऩे, संक्रमित उस्तरे से दाढ़ी बनवाने, मुंडन करवाने, संक्रमित सुई चुभने से होता है। यह रोग अभी तक लाइलाज कहलाता रहा। इसकी कोई वैक्सीन नहीं है। प्रतिरोधक क्षमता कम करने वाली (इम्यूनोसप्रैसिव) दवाओं के जरिये वायरस को शरीर से बाहर किया जाता है। वहीं, हेपेटाइटिस-बी की वैक्सीन है, लेकिन संक्रमण हो जाने के बाद रोगी को जीवन भर इसे दबाने की दवा खानी पड़ती है।
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