देहरादून। धधकते जंगल और बेबस महकमा। उत्तराखंड में इन दिनों तस्वीर कुछ ऐसी ही नजर आ रही है। पहाड़ से लेकर मैदान तक लगातार जंगल धधक रहे हैं। एक जंगल में आग बुझती नहीं कि दूसरे में भड़क उठती है। अब तो आग विकराल रूप धारण करती जा रही है। खासकर पिछले दो हफ्तों में। इस अवधि में ही जंगलों में आग की 623 घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जबकि 15 फरवरी से 30 अपै्रल तक 88 घटनाएं हुई थीं। इसके साथ ही इस फायर सीजन में अब तक वनों में आग की घटनाओं की संख्या 711 पहुंच चुकी है, जिसमें 992 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इस बीच अल्मोड़ा के मानीला के जंगल में भड़की आग से वहां रखा लीसे का स्टाक खाक हो गया। यही नहीं, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल व चंपावत जिलों में दो दर्जन से अधिक स्थानों पर अभी भी आग भड़कने की सूचना है।
15 फरवरी को अग्निकाल (फायर सीजन) शुरू होने पर वन महकमे की ओर से आग से निबटने के पुख्ता इंतजाम किए जाने का दावा किया गया था। इस बीच मौसम ने भी साथ दिया और अंतराल में होती रही बारिश के चलते 30 अपै्रल तक आग की छिटपुट घटनाएं ही होती रहीं। एक मई से पारे की उछाल के साथ ही जंगल तेजी से धधकने लगे तो महकमे तैयारी को लेकर किंतु-परंतु करने लगा। यह ठीक है कि आग से 992 हेक्टेयर को नुकसान पहुंचा है, मगर घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं।
सवाल ये भी उठता है कि जब अग्निकाल शुरू होने से पहले फायर लाइनों के फुकान समेत अन्य कदम उठाए गए थे तो आग की घटनाओं पर तुरंत नियंत्रण क्यों नहीं हो पा रहा। कई क्षेत्रों में ये बात भी सामने आ चुकी है, वहां जंगल पांच-छह दिन तक सुलगते रहे। ग्रामीणों के सहयोग से जैसे- तैसे वहां आग पर काबू पाया जा सका। ऐसे में महकमे की तैयारियों पर भी सवाल उठना लाजिमी है।
इस बीच अल्मोड़ा, नैनीताल, पौड़ी, चंपावत जिलों में कई जगह सोमवार को भी जंगल धधकते रहे। अल्मोड़ा जिले के सल्ट ब्लाक के मानिला वन क्षेत्र में लगी आग ने रिहायशी इलाके के नजदीक जंगल में रखे गए लीसा स्टॉक को अपनी चपेट में ले लिया। देखते ही देखते लीसे से भरे टिन धू-धू कर जलने लगे। वहां लीसे से भरे 150 टिन रखे गए थे। इनमें होने वाले विस्फोट से लोग सहमे रहे। साथ ही रतखाल बाजार व आसपास के क्षेत्रों में धुएं के काले गुबार छाये रहे। यही नहीं, पुरियाचौरा में गैस गोदाम के नजदीक भी आग पहुंच गई थी, जिस पर किसी तरह काबू पाया जा सका।