नई दिल्ली। केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में हिंसक हालात के खिलाफ चल रही सैन्य कार्रवाईयों से इतर नया राजनीतिक माहौल बनाने पर गंभीरता से काम कर रही है। ऐसे राजनीतिक चेहरे की तालाश की जा रही जो जनता के बीच राज्य के काले इतिहास की जगह नए भविष्य की बात करे। सरकार के नीतिकारों का मानना है कि अशांत घाटी में लोगों का बड़ा हिस्सा अलगाववाद, आतंकवाद और पाकिस्तानी अड़ंगों से तंग आ कर देश की मुख्य धारा में शामिल होने का मौका ढूंढ़ रहा है। योजना के मुताबिक यह नया नेतृत्व इन लोगों के समर्थन से नया राजनीतिक नैरेटिव शुरू करेगा। इस पर काम करने वाला तंत्र इस बात से आश्वस्त है कि कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है जिसका समाधान सिर्फ बंदूक से नहीं हो सकता।
पंचायत चुनावों में हिस्सा लेने वाले उम्मीदवारों पर सरकार की पैनी नजर
सरकारी सूत्रों ने बताया कि नए नेतृत्व के लिए हाल में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में हिस्सा लेने वाले उम्मीदवारों और विजेताओं पर सरकार की पैनी नजर है। जम्मू-कश्मीर से सिविल सर्विसेज परीक्षा पास करने वाले युवा अधिकारयों पर भी दांव खेला जा सकता है। गौर करने वाली बात यह है कि 2010 बैच के टॉपर रहे आईएएस अधिकारी शाह फैजल ने नौकरी से इस्तीफा दे कर नया राजनीतिक दल बनाया है। फैजल की तरह कश्मीरियों का एक बड़ा पढ़ा लिखा तबका पीडीपी और एनसी से अलग राज्य में नई सकारात्मक राजनीति की जमीन ढूंढ़ रहा है। केंद्र ने साल के आखिर तक होने वाले विधानसभा चुनाव में इस प्रयोग को सफल करने का लक्ष्य बनाया है।
हिंसा पर काबू, कश्मीरी पंडितों की वापसी पर होगा जोर
सूत्रों ने बताया कि हिंसा पर काबू पाने के साथ कश्मीरी पंडितों की वापसी और युवकों का देश के अन्य हिस्सों में बेपरवाह काम करने का माहौल तैयार करना इस नए प्रयोग का लिटमस टेस्ट होगा। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा जोखिम ऐसे नेतृत्व की जान का है। अब तक के तजुर्बे के मुताबिक घाटी में जिसने भी ऐसी बात की है पाकिस्तानी गुट ने उसकी हत्या कर दी है। इसके लिए भी एजेंसियां व्यापक योजना पर काम कर रही है।
घाटी में स्थानीय आतंकवादियों की संख्या 80 फीसदी
घाटी में इस समय स्थानीय आतंकवादियों की संख्या 80 फीसदी हो गई है। सूत्रों के मुताबिक ऐसा पहली बार हुआ है कि स्थानीय युवकों ने इतनी बड़ी संख्या में आतंकवाद का हाथ थामा है। अब तक पाकिस्तान से आए आतंकवादी ही हिंसा में मुख्य किरदार में रहते थे। लेकिन एजेंसियों की सघन कार्रवाई से इनकी संख्या काफी कम हो गई है। सोशल मीडिया पर भी ऐसे कश्मीरी युवक काफी मुखर हैं। एजेंसियां इसे आतंकवाद से ज्यादा उग्रवाद की स्थिति मान रही जो स्थानीय जमीन में ही पनपती है। अगर इस पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो स्थित और भयावह हो सकती है। ऐसे में नया नेतृत्व युवाओं को नया रास्ता दे सकता है।