बुंदेलखंड की प्यास नहीं बुझा पाया लिम्का बुक रिकार्ड, सम्मान का रच दिया नाटकीय इतिहास!

विनोद मिश्रा

बांदा जल संरक्षण के नाम पर बांदा का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज हो चुका है, फिर भी बुंदेलखंड की प्यास नहीं बुझ रही। बरसात का सीजन लगभग आधा समाप्त हो गया। जरूरत मुताबिक बरखा नहीं हुई। खेती बारिश को छोडिये प्यास बुझाने के लिए पानी का जुगाड़ करना बड़ी समस्या है। जो
कई दशकों से हैं और वर्तमान में बरकार है। लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड न खेत की और न पेट की प्यास बुझा पाई। हां रिकार्ड लेने वालों की प्यास सम्मान लेने के लिए जरूर बढ़ती जा रही है।

फिर से मिला जल के लिए सम्मान

27 जुलाई 2020 को बांदा जिले के पूर्व डीएम व वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अपर निदेशक हीरालाल और जखनी गांव निवासी सामाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय को फिर से सम्मानित किया गया। ‘रजत की बूंदे’ राष्ट्रीय जल पुरस्कार लखनऊ में प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त आलोक सिन्हा ने उन्हें सौंपा। कृषि उत्पादन आयुक्त ने बताया कि नीर फाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला यह पुरस्कार जल एवं पर्यावरण क्षेत्र में अहम योगदान करने वालों को हर वर्ष दिया जाता है। बांदा जिले में डीएम रहते हुए हीरालाल ने पारंपरिक जल स्रोतों के विकास और जल संरक्षण के प्रति जागरुकता के प्रयास किए।
बांदा जिले में डीएम रहे हीरालाल के कार्यकाल के समय 26 फरवरी से लेकर 25 मार्च 2019 तक चलाए गए कई अभियान में जिले में 2183 हैंड पंपों के आसपास 2605 उच्च खाइयों वाले घेरों का निर्माण किया गया। इस दौरान 470 ग्राम पंचायतों में 260 कुओं का भी निर्माण हुवा। लोगों में भूजल संरक्षण को लेकर जागरूकता के लिए गांवो में 469 जल चौपाल के आयोजन हुये।

रिकार्ड बनवाने में फिल्मी दुनिया भी रही भागीदार!

जल संरक्षण अभियान में सभी अधिकारियों, कर्मचारियों, आम जनता के साथ सामाजिक संस्था वाटर एड, अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान, प्यूपिल इंस्टीट्यूट और महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के छात्र भी शामिल रहे। इतना ही नहीं हास्य व्यंग्य कलाकार राजू श्रीवास्तव भी इस रिकार्ड में पुरजोर रोल निभाया।

पानी बचाने के नाम पर ये अभियान

कुआं-तालाब बचाओ अभियान, केन व यमुना जल आरती, कुआं पूजन, नदी के किनारे गांवों में खिचड़ी भोज भी करवाया।

तालाब से ज्ञान ले, लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड

अगर सच में पानी बचाने की चिंता है तो चंदेल कालीन राजाओं के बनाये जल स्त्रोत जैसे कुआं, तालाब, बावली से सीख ले लें। ज्यादा दूर जाने की भी जरूरत नहीं है कालिंजर किले के ऊपर बने तालाब को देख लीजिए, आज कोई इंजीनियर भी वैसा तालाब नहीं बना सकता। तब लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड शब्द पैदा भी नहीं हुआ था। चन्देल राजाओं ने यह सब चमत्कार कैसे किया क्योंकि उनको बुंदेलखंड की भौगोलिक स्थिति पता थी। उनको पैसे और रिकार्ड बनाने का लालच भी नहीं थी, चिन्ता थी तो बस पानी बचाने की।

क्या इस साल भी बुंदेलखंड होगा सूखाग्रस्त!

बारिश के डेढ़ महीना से ज्यादा समय बीत चुका है। अभी तक में उतनी बारिश नहीं हुई जिससे कि खेतों की प्यास बुझाई जा सके और खरीफ की फसल तैयार हो सके। क्या कर रहा है यह लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड? बुंदेलखंड के खेतों और लोगों की प्यास एक बार फिर से राजनीतिक खेल में दफन हो गई। क्या कभी बुंदेलखंड भी होगा पानीदार? ठीक वैसे जैसे यहां के लोग खुद को बताते हैं पानीदार।

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