आईवीएफ क्लिनिक ने शादी के 20 साल बाद दम्पती को गर्भधारण और स्वस्थ संतान को जन्म देने में की मदद
देहरादून। 37 वर्षीय सीमा और अनुज (बदला हुआ नाम) को शादी के 20 साल और आईवीएफ के छह असफल प्रयासों के बाद स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई है। दम्पती के संतान प्राप्ति में असफलता के बाद यह पता चला कि सीमा के गर्भाशय में प्रवेश करने के लिए दो ट्रैक या रास्ते थे उनमें से बड़ा वाला रास्ता फेक (गलत) था और दूसरा मार्ग सही मगर छोटा एवं छुपा हुआ था। प्राकृतिक और सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) के माध्यम से गर्भधारण में असफलता और असमर्थता से असंतुष्ट होने के बाद दम्पती ने मदद के लिए शहर में स्थित इंदिरा आईवीएफ क्लिनिक में संपर्क किया। प्रारंभिक जांचो में यह सामने आया कि अधिक उम्र के बावजूद सीमा के अंडों की संख्या अच्छी थी और ओवेरियन रिजर्व सामान्य था । पति अनुज की सीमन रिपोर्ट भी सामान्य थी । उनके उपचार इतिहास को देखा गया हालांकि आईवीएफ क्लिनिक के विशेषज्ञ एक असफल हिस्टेरोस्कोपी के कारण आश्चर्यचकित थे । हिस्टेरोस्कोपी एक रूटीन प्रक्रिया है जो गर्भ के अंदर की स्थिति देखने के लिए कैमरे से जुड़े स्काॅप की मदद से की जाती है।
इंदिरा आईवीएफ देहरादून में सेंटर हेड और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. रीमा सिरकार ने बताया कि हिस्टेरोस्कोपी के असफल होने का कोई कारण पता नहीं चला । हमने अपने क्लिनिक में फिर से यह प्रक्रिया की तो निष्कर्ष हैरान करने वाले थे। हमने देखा कि गर्भाशय का आकार सामान्य था, हालांकि विभिन्न बिंदुओं पर वाॅल एक दूसरे से चिपकी हुई थीं। यह बहुत ही असामान्य है लेकिन अल्ट्रासाउंड के दो दौर के बाद हमें सामान्य गर्भाशय के बारे में पता चल गया ।
काफी मंथन के बाद इंदिरा आईवीएफ देहरादून की टीम ने यूट्रस के फेक ट्रेक की संभावना पर विचार किया। महिला की शारीरिक रचना में योनि के माध्यम से ट्रैक सरविक्स से होते हुए बाद में गर्भाशय में एकतरफा खुलता है। यहां एक फेक टेªक के अस्तित्व का मतलब होगा कि दो ओपनिंग हैं – केवल सही टेªक गर्भाशय की ओर जाएगा, जहां गर्भधारण हो सकता है।
डॉ. सिरकार ने बताया कि दम्पती को संभावनाओं को अच्छी तरह से समझाने और प्रक्रिया करने के लिए उचित सहमति लेने के बाद, ऐनेस्थिसिया के साथ हिस्टेरोस्कोपी और अल्ट्रासाउंड की योजना बनाई गई । काफी कोशिशों के बाद हमें वास्तविक गर्भाशय में एक छोटा, अविकसित वैकल्पिक ओपनिंग मिल गयी । यह वही था जिसे हमने पहले अल्ट्रासाउंड में देखा था । हम छिपे हुए सही मार्ग को खोजने में सफल हो गये थे। यह संभव है कि प्राकृतिक गर्भावस्था और आईवीएफ में असफलता का कारण फेक मार्ग का बड़ा होना हो सकता है।
विकसित गलत ट्रैक के बजाय छुपे हुए सही मार्ग में प्रवेश करने के लिए कई मॉक ट्रायल किए गए यह मुश्किल था। सीमा के गर्भाशय में इसके बाद भ्रूण ट्रांसफर किया गया और 15 दिन बाद बीटा-एचसीजी टेस्ट में उसकी प्रेगनेंसी रिपोर्ट पाॅजिटिव आयी । इसके बाद उसने नियमित जांचे करवाई, लेकिन 8 महीने में प्री-टर्म बर्थ हो गया। कुछ समय तक बच्चे को एनआईसीयू में रखा गया । अभी माता-पिता को मिली यह खुशी छह महीने की हो गयी है और पूर्णरूप से स्वस्थ है।
डॉ. सिरकार ने कहा कि दंपती की दृढ़ निश्चय और सकारात्मक रवैये, कुशल टीम के काम और प्रत्येक मरीज पर विेशेष ध्यान के कारण एक परेशान दम्पती की निराशाजनक यात्रा का सुखद अंत हुआ ।