राजकुमार राव की पिछली कई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अपनी लागत बटोरने के साथ अच्छी-खासी कमाई करने में भी कामयाब रही हैं। रॉव की पिछली फिल्म ‘न्यूटन’ ऑस्कर में एंट्री पाने में कामयाब रही तो ‘बहन होगी तेरी’, ‘बरेली की बर्फी’ को क्रिटिक्स और दर्शकों ने सराहार। अगर ‘शादी में जरूर आना’ की बात करें तो इस फिल्म में बेशक रत्ना सिन्हा ने अपनी ओर से एक बेहतरीन कॉन्सेप्ट उठाया तो लेकिन डायरेक्टर ने इस सिंपल कहानी को बेवजह इस तरह खींचा कि इंटरवल के बाद फिल्म दर्शकों का इम्तिहान लेने लगती है। फिल्म की रिलीज़ से पहले डायरेक्टर ने अपनी इस फिल्म को मीडिया और दर्शकों में हॉट करने के मकसद से कुछ विवादों का सहारा भी लिया तो फिल्मी मैगज़ीन्स में रॉव और कृति को लेकर जमकर गॉशिप भी आई, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को इनका कुछ खास फायदा मिलने वाला नहीं है। अलबत्ता राव की पिछली तीन फिल्मों में दमदार ऐक्टिंग का फायदा फिल्म को कहीं न कहीं मिल सकता है। वैसे भी इस फिल्म को देखने की यही दो खास वजहें हैं, एक कहानी का रिऐलिटी के नजदीक होना और दूसरा लीड किरदार सत्तु में रॉव की बेहतरीन ऐक्टिंग।
स्टोरी प्लॉट: कहानी कानपुर शहर से शुरू होती है। एक दफ्तर में कर्ल्क सत्येंद्र मिश्रा उर्फ सत्तु (राजकुमार राव) को उसके मामा शादी के लिए एक लड़की की फोटो दिखाते हैं। लड़की की फोटो को देखते ही सत्तु की फैमिली पसंद कर लेती है, लेकिन आरती शुक्ला ( कृति खरबंदा) की मां चाहती है कि उसकी बेटी शादी से पहले अपने होने वाले पति से एक बार मिल ले। शुरुआत में आरती शादी के लिए हां नहीं करती और इसकी वजह उसे अपना करियर बनाकर अपने सपनों को साकार करना है, लेकिन अपने पापा की जिद के चलते आरती शादी करने के लिए राजी हो जाती है। सत्येंद्र और आरती को इस अरेंज मैरिज के लिए मिलवाया जाता है और पहली ही मुलाकात में आरती और सत्तु एक-दूसरे को दिल दे बैठते हैं। इसके बाद दोनों की फैमिली इनकी शादी की तैयारियों में लग जाती है, लेकिन ठीक शादी वाले दिन दुल्हन आरती मंडप से गायब हो जाती है। सत्तु को लगता है कि आरती ने उसके साथ धोखा किया है और वह अब उसका मकसद आरती से बदला लेना है। सीधा-सादा सत्तु अब एंग्रीमैन बन जाता है।
अगर ऐक्टिंग की बात करें तो मानना होगा कि राव अब हर तरह के किरदार करने में एक्सपर्ट हो चुके हैं, यहां भी सत्तु के किरदार में रॉव का जवाब नहीं है। कृति खरबंदा अपने रोल में बस ठीक-ठाक रही हैं। वैसे भी यह रॉव के इर्दगिर्द घूमती कहानी है सो बाकी कलाकारों को वैसे भी कुछ ज्यादा करने का मौका ही नहीं मिला। डायरेक्टर ने इस सीधी कहानी को इंटरवल से पहले तो सही ट्रैक पर रखा, लेकिन इंटरवल के बाद क्लाइमैक्स को न जाने क्यों मुंबइया फिल्मों की तर्ज पर करने के लिए फिल्म को बेवजह खींचा है। फिल्म में गाने हैं, शादी के इस सीजन में फिल्म का ‘पल्लू लटके’ गाना इस बार खूब बज सकता है। इस गाने को नए स्टाइल में पेश किया गया है, बेशक यह गाना माहौल और फिल्म में पूरी तरह से फिट है लेकिन बाकी गाने फिल्म की स्पीड को कम करने का काम करते हैं, वहीं किसी गाने में इतना दम नहीं कि हॉल से बाहर आकर आपको याद रहे।
क्यों देखें : अगर आप राजकुमार राव के फैन है और अपने चहेते ऐक्टर की सभी फिल्में देखते हैं तो इस शादी में भी जाएं , लेकिन इस शादी में इतना भी दमखम नहीं है कि शादी में जरूर ही जाना है।