देहरादून। मानवाधिकार आयोग के आंकड़े मित्र पुलिस की छवि पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। जानकार हैरानी होती है कि मानवाधिकार उल्लंघन की जितनी शिकायतें मानवाधिकार आयोग पहुंच रही हैं, उनमें से करीब 60 फीसद मामले पुलिस के रवैये के खिलाफ दर्ज किए जाते हैं। वर्ष 2012 से लेकर अब तक पुलिस के खिलाफ 3500 से अधिक शिकायतें आयोग को मिली हैं। इसमें रिपोर्ट न लिखने से लेकर जांच में लीपापोती व उत्पीड़न तक की शिकायतें शामिल हैं।
मानवाधिकार आयोग की सदस्य डॉ. हेमलता ढौंढ़ियाल के अनुसार पुलिस के खिलाफ आने वाली सर्वाधिक शिकायतों को देखते हुए कई बार मानवाधिकार आयोग अपनी जांच टीम से भी मामलों की जांच कराती है। साथ ही संबंधित पुलिस या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भी प्रकरण भेजा जाता है। इसके अलावा आयोग के पास नगर निकाय व ऊर्जा निगम की अनदेखी की शिकायतें भी बड़ी संख्या में आ रही हैं।
इनकी संख्या कुल शिकायतों में करीब 15 फीसद है। वहीं, पेंशन व सेवा के बाद के देयकों को लेकर भी आयोग में दर्ज होने वाली शिकायतों का ग्राफ बढ़ रहा है। इसके अलावा सेवा संबंधी जैसे-पदोन्नति के मामले भी आ रहे हैं, लेकिन इन प्रकरणों में शिकायतकर्ता को पहले संबंधित विभाग व ट्रिब्यूनल में जाने की सलाह दी जाती है।
आयोग में दर्ज शिकायतों की स्थिति
कुल शिकायतें दर्ज, 6295
निस्तारित शिकायतें, 5801
लंबित शिकायतें, 494
अनूठी प्रकृति के मामले भी आ रहे
आयोग सदस्य डॉ. हेमलता ढौंढ़ियाल के अनुसार कई बार इस तरह के मामले सामने आते हैं, जो दुर्लभ श्रेणी के होते हैं। इनके निस्तारण में कई बार नई बातें सामने आती हैं और ये सभी के लिए नजीर भी बनते हैं। उन्होंने कहा कि जानवरों से फसल क्षति का भी एक प्रकरण इन दिनों सुनवाई का हिस्सा है। ऐसे ही एक मामले में एक व्यक्ति ने बंदरों से उनकी टमाटर की फसल की क्षति को लेकर आयोग का दरवाजा खटखटाया था। इसमें आयोग के प्रयास से वन विभाग ने क्षतिपूर्ति दी, लेकिन जब से क्षतिपूर्ति का नियम बना, उससे पहले का मुआवजा भी मांगा गया है। वन विभाग भी इस स्थिति पर असमंजस में है और फिलहाल आयोग भी विभाग के जवाब का इंतजार कर रहा है।