चंडीगढ़। भारतीय खेल जगत के लिए इससे बुरी बात क्या हो सकती है कि एक ओलिंपियन दो समय के भोजन के लिए संघर्ष कर रहा है। लक्खा सिंह भारत के युवा बॉक्सर्स को ट्रेनिंग देकर देश को कुछ और पदक दिला सकते थे, लेकिन वह जीवनयापन के लिए टैक्सी चलाने को मजबूर हैं। साथी खिलाड़ी से मिले धोखे और खेल संघों, सरकारों द्वारा नजरअंदाज किए जाने की वजह से उनकी जिंदगी बेहद खराब दौर से गुजर रही है।
लक्खा ने 1994 के हिरोशिमा एशियाड में 81 किलो कैटिगरी में देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता था। पांच बार के नैशनल चैंपियन रहे लक्खा ने 1994 में तेहरान में आयोजित एशियन बॉक्सिंग चैंपिनशिप में भी सिल्वर मेडल हासिल किया था और अगले ही साल इसी चैंपियनशिप में दूसरा सिल्वर मेडल जीतकर अपना लोहा मनवाया।
दो साल में तीन अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने वाले लक्खा सिंह 1996 के अटलांटा ओलिंपिक में भारत के सबसे चमकदार सितारे थे। उनसे यहां भी मेडल की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन एशियन लेवल के अपने खेल को वह ओलिंपिक मेडल में नहीं बदल सके और 91 किलो कैटिगरी में 17वें नंबर पर रहे। 1990 के मध्य तक अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सिंग प्रतियोगिताओं में मेडल के लिए सबसे ज्यादा उम्मीद उनसे ही की जाती थी। शानदार खेल और देश के लिए उनका समर्पण एक धोखे की वजह से धूमिल हो गया। अब राज्य सरकार ओर बॉक्सिंग फेडरेशन से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है।
52 वर्षीय पूर्व बॉक्सर ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, ‘मैंने अपनी स्थिति को लेकर भारतीय अमेचर बॉक्सिंग फेडरेशन (आईएबीएफ) के साथ पंजाब सरकार को कई खत लिखे, लेकिन किसी ने कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।’ कांपती आवाज में उन्होंने आगे कहा, ‘मैं जो टैक्सी चला रहा हूं वह भी मेरी नहीं है। कोई मेरी बात सुनने को तैयार नहीं है।’
धोखे ने बदली जिंदगी
सिंह ने 19 साल की उम्र में 1984 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। 1996 ओलिंपिक के दो साल बाद उनकी जिंदगी ने खराब मोड़ लिया। 1998 में उन्हें एक अन्य बॉक्सर दीबेंद्र थापा के साथ वर्ल्ड मिलिटरी बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेना था। हालांकि जोड़ी टेक्सास एयरपोर्ट से बाहर निकल गई और गायब हो गई। उन्हें सेना ने भगोड़ा घोषित कर दिया।
यहां यह समझा गया कि दोनों अमेरिका में फ्रफेशनल बॉक्सिंग में करियर बनाना चाहते थे। थापा अमेरिका के प्रफेशनल सर्किट में खेले भी लेकिन लक्खा ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने उस समय को याद करते हुए बताया, ‘यह सच है कि हम दोनों एयरपोर्ट से बाहर गए। थापा ने मुझे बताया था कि यहां कुछ दोस्तों से मिलना है। हमने कार में बैठकर ड्रिंक लिया और मेरा विश्वास करें उसके बाद हम कभी नहीं मिले। मेरी आंख खुली तो मैं एक बंद कमरे में था। मैं वहां करीब एक महीने तक कैद रहा और इसके बाद मुझे अपार्टमेंट से बाहर फेंक दिया गया। वह मेरी जिंदगी का सबसे मुश्किल वक्त था। मेरे पास पैसे नहीं थे, वीजा एक्सपायर कर चुका था। मैं यह भी नहीं जानता था कि यह जगह कौन सी है।’
आगे उन्होंने बताया, ‘मैं कुछ एशियन लोगों से मिला जिन्होंने कैलिफोर्निया जाने में मेरी मदद की। मैंने वहां गैस स्टेशन, रेस्त्रां और कंस्ट्रक्शन साइट पर काम किया। मुझे भारत आने के लिए पैसे जुटाने में 8 साल लग गए। बाद में भारतीय दूतावास की मदद से मैं वापस भारत आया। तब तक वीजा नहीं होने की वजह से मैं पुलिस से छिपता रहता था।’
दीबेंद्र थापा के बारे में पूछने पर पूर्व भारतीय चैंपियन ने कहा, ‘मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि वह प्रफेशनल बॉक्सिंग में जाना चाहता है। मैं उस घटना के बाद उससे कभी नहीं मिला।’ 2006 में लक्खा लुधियाना में अपने गांव हलवाड़ा लौटे। उन्होंने कहा, ‘मैं वापस लौटकर बहुत खुश था, लेकिन पता चला कि सेना ने मुझे भगोड़ा घोषित कर दिया है, बिना किसी जांच के मेरे बारे में यह फैसला ले लिया गया।’