देहरादून: पटियाला हाउस कोर्ट नई दिल्ली ने नकरौंदा स्थित कुबेर प्लांटर्स और कुबेर फ्लोरीटेक की जिस 22.76 एकड़ भूमि को जब्त करने के आदेश दिए थे, उसे वर्ष 2013 में तत्कालीन अपर तहसीलदार सदर शुजाउद्दीन ने उसी कंपनी के नाम पर दर्ज कर दिया। उस समय जिलाधिकारी ने उप जिलाधिकारी सदर को अपर तहसीलदार की संलिप्तता की विस्तृत जांच करने को कहा था। जबकि यह जांच आज तक हुई ही नहीं है। एक अपील की सुनवाई में इस बात का खुलासा सूचना आयोग में हुआ और प्रकरण को गंभीर मानते हुए राज्य सूचना आयुक्त सुरेंद्र सिंह रावत ने आदेश की प्रति मुख्य सचिव, सचिव राजस्व परिषद व जिलाधिकारी देहरादून को भेजी। ताकि इस दिशा में उचित कार्रवाई की जा सके।
आयोग में हुई सुनवाई में सामने आया कि कुबेर प्लांटर्स व कुबेर फ्लोरीटेक के भूमि फर्जीवाड़े पर क्राइम ब्रांच नई दिल्ली के फोरजरी सेक्शन के सहायक आयुक्त ने एक पत्र दो सितंबर 1999 को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पटियाला हाउस कोर्ट को भेजा था। इसके क्रम में कोर्ट ने 19 अगस्त 1999 के आदेश में संबंधित भूमि को कुर्क/जब्त करने के आदेश दिए थे। वर्ष 2001 में कोर्ट के आदेश को खतौनी पर चढ़ाकर भूमि को जब्त भी कर दिया गया था। हालांकि इसके कई साल बाद 13 मई 2013 को तत्कालीन अपर तहसीलदार शुजाउद्दीन सिद्दीकी ने मिलीभगत कर नए खसरा नंबर के आधार पर जमीन को कंपनी के नाम कर दिया।
पटियाला हाउस कोर्ट ने पुराने खसरा नंबर वाली कुबेर प्लांटर्स के खसरा संख्या 412/6 (रकबा 44.84 एकड़), कुबेर प्लांटर्स के खसरा संख्या 452/12, 456/1, 456/7 (रकबा 11.92 एकड़) की भूमि को जब्त करने को कहा था। जबकि नामांतरण आदेश में इस भूमि के नए खसरा नंबर 684क, 690क, 699क को ही दर्ज किया गया। नामांतरण करते समय पुराने खसरा नंबर की पड़ताल करना अनिवार्य होता है।
वेल्हम गर्ल्स सोसाइटी से जुड़ा है प्रकरण
तत्कालीन अपर तहसीलदार शुजाउद्दीन ने 12 दिसंबर 1997 के उस आदेश को आधार बनाया, जिसमें यह भूमि वेल्हम गर्ल्स सोसाइटी से विक्रित होकर कुबेर प्लांटर्स लि. व कुबेर फ्लोरीटेक के पक्ष में दिखाई गई है। इसके बाद करीब 15 साल तक किसी भी सक्षम अधिकारी ने नामांतरण की कार्रवाई नहीं की और इस बीच पटियाला हाउस कोर्ट ने पूरी भूमि को जब्त करने का आदेश भी दे दिया था। जबकि तत्कालीन अपर तहसीलदार ने कोर्ट के आदेश को नजरंदाज कर घोटाले को अंजाम दे दिया।