उत्तरकाशी: एक दौर था जब उत्तराखंड ऊन व्यवसाय के क्षेत्र में विशेष पहचान रखता था। लेकिन पारंपरिक ढंग से ऊन के वस्त्र तैयार करने में समय एवं श्रम अधिक लगने के कारण धीरे-धीरे ये वस्त्र आम लोगों की पहुंच से दूर होते चले गए। हालांकि, अब सीमांत उत्तरकाशी जिले के जनजातीय क्षेत्र में आधुनिक तौर-तरीकों ने इस व्यवसाय को गति दी है। इससे ऊन व्यवसाय से जुड़ी जनजातीय क्षेत्र की महिलाओं का बोझ भी कम हुआ है।
85 हजार भेड़, 95 टन ऊन…
उत्तरकाशी जिले में गंगा घाटी से लेकर यमुना घाटी तक के काश्तकारों का कृषि-बागवानी के साथ ही भेड़ पालन भी एक मुख्य व्यवसाय है। जिले में 15 से अधिक गांव पारंपरिक भेड़ पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। उत्तराखंड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड के सर्वे के अनुसार वर्तमान में उत्तरकाशी जिले में 85 हजार से अधिक भेड़ हैं। इनसे प्रतिवर्ष 95 टन से अधिक ऊन निकलता है।
यह थी मुश्किल…
बगोरी गांव के पूर्व प्रधान एवं भेड़ पालक हीरालाल नेगी बताते हैं कि ऊन से कपड़े तैयार करने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है। सबसे पहले ऊन की छंटाई की जाती है और ऊन से तागा (सूत) तैयार किया जाता है। तागा तैयार होने पर उसकी रंगाई, फिर कपड़ों की बुनाई और इसके बाद धुलाई की जाती है। धुलाई का काम सबसे मेहनत वाला है और यह काम महिलाओं के ही जिम्मे है।
हाथों के साथ पैरों से भी कपड़े की तब तक धुलाई की जाती है, जब तक कि वह चमकने न लगे। क्षेत्र में ऊन व्यवसाय बढ़ाने का काम करने वाली शांति परमार के अनुसार ऊनी कपड़ों की धुलाई करने वाली अधिकांश महिलाओं की शिकायत रहती थी कि उनकी कमर और घुटनों में दर्द हो रहा है।
पता चला कि बेचने और स्वयं पहनने के लिए तैयार किए गए एक ऊनी वस्त्र को मुलायम करने में ही तीन से चार घंटे का समय लग जाता है। यह देख उन्होंने संकल्प नाम की संस्था गठित की।
अब आ गई मशीनें…
संकल्प संस्था की ओर से ऊनी कपड़ों की धुलाई, उन्हें सुखाने और प्रेस करने के लिए मशीन लगाने का प्रस्ताव वर्ष 2016 में केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय को भेजा गया। मंत्रालय को प्रस्ताव पसंद आया और उत्तरकाशी के डुंडा क्षेत्र का निरीक्षण करने के बाद धुलाई, सुखाई और प्रेस करने के लिए यहां मशीनें लगाई गईं।
गांव के ही लोगों को इसका प्रशिक्षण भी दिया गया। शांति परमार बताती हैं कि अब मशीन पर एक साथ एक क्विंटल ऊनी कपड़ों की धुलाई हो जाती है। ग्रामीणों से सिर्फ बिजली के बिल का पैसा ही लिया जाता है।
समय बचा तो बढ़ा उत्पादन…
बगोरी गांव की विजेता देवी कहती हैं, जब से ऊनी कपड़ों की धुलाई और प्रेस करने के लिए मशीन लगी हैं, उन्हें काफी सहूलियत मिली है। उनका जो समय कपड़ों की धुलाई में लगता था, वह समय अब नए कपड़ों की बुनाई में लग रहा है। साथ ही बाजार की मांग के अनुरूप नई डिजाइन के कपड़े भी तैयार किए जा रहे हैं।
बढ़ने लगा कारोबार…
भेड़ पालक हीरालाल नेगी बताते हैं, वर्ष 2017 से लेकर अब तक उत्तराखंड के वीरपुर डुंडा के ग्रामीणों ने ऊनी वस्त्रों की बिक्री से आठ लाख रुपये से अधिक की कमाई कर ली है। दो लाख के कपड़े तो ग्रामीणों ने इसी वर्ष उत्तरकाशी के माघ मेले में बेचे। जबकि, 50 हजार रुपये के कपड़े कृषि महोत्सव, 80 हजार के गंगनानी वसंत महोत्सव में बेचे गए। तीन हजार स्वेटर जिले के स्कूलों को दी गई हैं।