नई दिल्ली। कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी भले ही बहुमत के आंकड़े से थोड़ा दूर रह गई हो, लेकिन पूरे देश की बात की जाए तो भाजपा के पास बहुमत है। इस वक्त करीब-करीब पूरे देश पर भाजपा या उसके सहयोगी दलों का राज है। कांग्रेस इस वक्त अपने इतिहास के सबसे कमजोर स्थिति में है। भाजपा इसके उलट सबसे मजबूत पार्टी के तौर पर स्थापित हो गई है।
आंकड़ों की भाषा में बात करें तो इस वक्त पूरे देश में कांग्रेस के मात्र 727 विधायक हैं। जबकि भाजपा के पास पिछले ढाई दशक के मुकाबले सबसे ज्यादा 1518 विधायक हैं। मीडिया और इतिहासकार इस आंकड़े को लेकर विश्लेषण कर सकते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक वक्त सबसे ज्यादा विधायकों वाली कांग्रेस आज सबसे कमजोर आंकड़े तक पहुंच गई है। गौरतलब है कि साल 1974 में कांग्रेस के पास सर्वाधिक 2253 विधायक थे। इस लिहाज से देखें तो बीजेपी का स्वर्णिम काल अभी आना बाकी है और यही बात भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी कहते हैं।
अब तक का सफर
आइए आंकड़ों के जरिए ही समझते हैं कांग्रेस और भाजपा के यहां तक का सफर के बारे में। अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। यही जनसंघ साल 1980 के बाद भाजपा के रूप में जाना गया। जनसंघ की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी। इसके बाद 1952 के आम चुनाव हुए। श्यामा प्रसाद मुखर्जी समेत जनसंघ के 3 सदस्यों को लोकसभा में जाने का मौका मिला। इस तरह जनसंघ का सफर चल निकला। साल 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ। इसके बाद 1963 से जनसंघ की उम्मीद का दीया विधानसभाओं में भी जलने लगा। गौरतलब है कि जनसंघ का चुनाव निशान जलता दीया होता था। इस साल जनसंघ के 116 उम्मीदवार विभिन्न विधानसभाओं में पहुंचे। इस वक्त तक कांग्रेस के पास 1714 विधायक थे।
इंदिरा के खिलाफ गुस्से का लाभ नहीं ले पाई भाजपा!
चीन के बाद साल 1971 में पाकिस्तान के साथ भारत का युद्ध हुआ। इस साल कांग्रेस के भी दो विधायक बढ़ गए और जनसंघ के विधायकों की संख्या भी 211 तक पहुंच गई। इसके बाद 1973 में लालकृष्ण आडवाणी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए। 1975 में जनसंघ को इंदिरा गांधी के खिलाफ जेपी का साथ मिला। इसी बीच इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा था। इंदिरा गांधी को भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी, भारतीय लोकदल समेत कई पार्टियों के गठबंधन ने मिलकर सत्ता से बाहर किया। लेकिन इसका फायदा जनसंघ को न मिल सका और साल 1979 में जब हर ओर मंडल कमीशन का शोर मचा था, कांग्रेस की विधायकों की संख्या पहली बार हजार से भी कम (954) रह गई, लेकिन संघ के विधायकों की भी गिनती घटकर 189 तक पहुंच गई।
जनसंघ से भाजपा
1980 में जनसंघ ने गठबंधन से अलग होकर भाजपा की स्थापना की। जनसंघ अब भारतीय जनता पार्टी के रूप में देश के लोगों के सामने था। करीब 9 साल बाद 1989 में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की संख्या 250 का आंकड़ा पार कर गई। उधर, कांग्रेस के विधायकों की संख्या भी 1877 तक पहुंच चुकी थी। इसी साल से कमल खिलने का ऐसा सिलसिला चला कि आज भाजपा देश की सबसे मजबूत पार्टी है। इस बीच कारसेवकों ने साल 1992 में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया। 1993 में इसके परिणाम स्वरूप भाजपा के विधायकों की संख्या 625 तक पहुंच गई। कांग्रेस को झटका लगा। उसके विधायक देशभर में घटकर 1501 तक रह गई।
नरेंद्री मोदी ने किया 21वीं सदी में भाजपा की जीत का आगाज
इसके बाद साल 2001 में भुज भूकंप के बाद गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने की बात आयी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी पर भरोसा किया। नरेंद्र मोदी ने भी भूकंप से तबाह हो चुके भुज व आसपास के इलाकों का तेजी से विकास किया। इस साल जहां देशभर में भाजपा के विधायकों की संख्या 770 तक पहुंच गई वहीं, कांग्रेस के विधायक घटकर 1236 पर आ गए। इसके बाद 2009 में फिर कांग्रेस के विधायकों की संख्या घटकर 1172 तक आ गई तो भाजपा के विधायक बढ़कर 838 तक पहुंच गए।
2014 में मोदी लहर, हजार पार
2014 के आम चुनावों के साथ हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा ने बाजी मारी वहीं, एक बार फिर कांग्रेस पिछड़ गई। इस साल कांग्रेस के विधायकों की संख्या का आंकड़ा एक हजार से भी नीचे (911) आ गया तो वहीं, भाजपा के विधायकों की संख्या का आंकड़ा पहली बार हजार की संख्या (1058) को पार कर गया।
2014 के बाद से अब तक हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल की है तो कांग्रेस एक के बाद चुनाव हारती जा रही है। आज कांग्रेस के विधायकों की संख्या अब तक के इतिहास की सबसे कम 727 तो भाजपा के विधायकों की संख्या सर्वाधिक 1518 है।