रुद्रप्रयाग: केदारनाथ यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव स्थल गौरीकुंड जून 2013 की आपदा के बाद से बिना कुंड के है। जिस कुंड के नाम से इस स्थान का नाम गौरीकुंड पड़ा, वह कुंड यहां धारा के रूप में बह रहा है। लेकिन, सरकार की ओर से आज तक इसके संरक्षण को कोई प्रयास नहीं हुए। ऐसे में अधिकांश यात्री पौराणिक एवं सदियों से चली आ रही परंपराओं के विपरीत बिना स्नान के ही यहां से केदारनाथ धाम के लिए रवाना हो रहे हैं।
आपदा में केदारनाथ के जिन पड़ाव स्थलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा था, उसमें गौरीकुंड प्रमुख है। यात्रा के दौरान सबसे अधिक चहल-पहल वाले इस कसबे का मंदाकिनी नदी से लगा पूरा हिस्सा बाढ़ में समा गया था। जिसमें दर्जनों होटल व लॉज के साथ ही तप्तकुंड भी शामिल था।
यात्री इस कुंड में स्नान करने के बाद ही केदारनाथ के लिए प्रस्थान करते थे। लेकिन, वर्तमान में कुंड का अस्तित्व न होने के कारण यात्रियों को मायूस होना पड़ रहा है। हालांकि, गौरीकुंड में गर्म पानी का स्रोत आज भी मौजूद है, लेकिन अब यह पुराने कुंड से 50 मीटर नीचे चला गया है। जहां पर गर्म पानी की धारा फूट रही है। कुछ यात्री इसी धारा में स्नान करते हैं।
माता पार्वती ने किया था कुंड का निर्माण
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने अपने तप से इस कुंड का निर्माण किया था। तप्त कुंडों का औषधीय गुणों वाला जल चर्म रोगियों के लिए बेहद उपयोगी माना गया है। ‘स्कंद पुराण’ के केदारखंड में तप्त कुंडों की विस्तार से महत्ता बताई गई है।
जल्द होगा निर्माण
रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मंगेश घल्डियाल के मुताबिक गौरीकुंड में तप्त कुंड निर्माण को गढवाल मंडल विकास निगम की ओर से सर्वे का कार्य किया जा चुका है। शीघ्र गौरीकुंड में कुंड का निर्माण पूर्ण कर लिया जाएगा।
नहीं दिया गया ध्यान
गौरीकुंड व्यापार संघ के पूर्व अध्यक्ष कुशलानंद गोस्वामी के मुताबिक आपदा के पांच वर्ष बाद भी गौरीकुंड में कुंड का पुनर्निर्माण न हो पाना दुर्भाग्यपूर्ण है। गौरीकुंड का अस्तित्व ही तप्त कुंड से है, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
यात्रियों को हो रही परेशानी
गौरीकुंड व्यापार संघ के पूर्व अध्यक्ष महेश बगवाड़ी के अनुसार पौराणिक कुंड के स्थान पर नए कुंड का निर्माण न होने से स्थानीय लोगों में आक्रोश है। धारे के रूप में बह रहे गर्म पानी के स्रोत पर यात्रियों को स्नान करने में काफी दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं।