ट्रॉली के सहारे मन्दाकिनी नदी को पार करके स्कूल जाने को मजबूर बच्चे

रुद्रप्रयाग: रुद्रप्रयाग से महज 18 किलोमीटर दूर केदार घाटी के विजयनगर कस्बे में करीब दो सौ बच्चे कतार में खड़े होकर ट्रॉली में स्थान मिलने का इंतजार कर रहे हैं। वर्ष 2013 में मंदाकिनी की उफनती लहरों ने आधे कस्बे के साथ ही नदी पर बने एकमात्र पुल को भी लील लिया था। तब से यही ट्रॉली उस पार जाने का अकेला सहारा है।

हालांकि बीते पांच साल से इन मासूमों के लिए यह कार्य उनकी दिनचर्या का हिस्सा ही है, लेकिन बरसात के दिनों में उफनती मंदाकिनी की लहर दिलों में दहशत पैदा करती हैं। सिर्फ इतना ही नहीं पांच साल में ऐसी ट्रॉलियों से 45 हादसे हो चुके हैं, जिनमें पांच की जान गई और कई को गंभीर चोट आई हैं। जाहिर है मानसून का सीजन इनके लिए किसी दु:स्वपन से कम नहीं है। मंदाकिनी के पार बड़मा और चिलरगढ़ पट्टी के दो दर्जन से ज्यादा गांवों के बच्चों को शिक्षा के लिए विजयनगर आना पड़ता है।

चार साल से नहीं बना एक अदद पुल
केदारनाथ त्रसदी के बाद केदार घाटी में मंदाकिनी के पार बसे गांवों की जिंदगी ट्रॉली पर ही टंगी है। वर्ष 2014 में यहां पैदल पुल निर्माण को मंजूरी मिली और इसके लिए करीब एक करोड़ रुपये की धनराशि भी जारी की गई, लेकिन सिस्टम की कछुआ चाल से पुल अभी भी निर्माणाधीन है। ग्रामीणों के लिए नदी पर अस्थायी व्यवस्था के तौर पर एक फोल्डिंग पुल भी बनाया गया था, लेकिन पिछले दिनों भारी बारिश के दौरान यह भी क्षतिग्रस्त हो गया। ऐसे में इसे हटाना पड़ा।

विजयनगर व्यापार संघ के पूर्व उपाध्यक्ष सावन नेगी का आरोप है कि विभागीय लापरवाही का खामियाजा मासूमों को उठाना पड़ा रहा है। वह कहते हैं कि पांच साल की अवधि कम नहीं होती, लेकिन एक अदद पुल नहीं बन सका।

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