दून जिला कारागार में कैदी बने डॉक्टर

देहरादून। देहरादून के सुद्धोवाला स्थित जिला कारागार में कैदी न केवल अपने आपराधिक अतीत को कोसों दूर छोड़ चुके हैं, बल्कि अपराध की दुनिया में आने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन रहे हैं। उनमें यह बदलाव संभव हो पाया है  ‘प्राणिक हीलिंग उपचार पद्धति’ के माध्यम से। इस पद्धति को जीवन में अपनाकर कैदी स्वयं तो अपनी काया को निरोगी बना ही रहे हैं, अन्य अस्वस्थ कैदियों को भी आवश्यक उपचार दे रहे हैं। रोग कितना ही गंभीर क्यों न हो, ये कैदी प्राणशक्ति (तरंग ऊर्जा) के जरिए हर बीमारी को छूमंतर कर देते हैं। यही वजह है कि आज देहरादून जिला कारागार देश की मॉडल जेल में शुमार हो चुका है। उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून में स्थित सुद्धोवाला जेल प्रदेश ही नहीं, देश की संवेदनशील जेलों में शामिल की जाती है। यहां राष्ट्रीय स्तर के अपराधियों को भी रखा जाता रहा है, इसलिए जेल के अधिकारी-कर्मचारी खासा तनाव में रहा करते थे। पिछले तीन वर्षों से जेल के भीतरी माहौल में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। इसका श्रेय जाता है जिला कारागार अधीक्षक महेंद्र सिंह ग्वाल की ओर से प्राणिक हीलिंग पद्धति के रूप में अपनाए गए अभिनव प्रयोग को। वर्ष 2015 में ‘मनुर्भव’ संस्था की ओर से कारागार अधीक्षक ग्वाल के समक्ष यह प्रस्ताव रखा गया था। अतिसंवेदनशील जेल होने के कारण इसे अनुमति देना बेहद खतरनाक साबित हो सकता था। क्योंकि कैदी प्रशिक्षकों के साथ किसी भी अनहोनी को अंजाम दे सकते थे। प्रशिक्षक डॉ. गिरीबाला जुयाल परिणामों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थीं। उनके विश्वास को देखते हुए कारागार अधीक्षक ने आखिरकार इसे अनुमति दे ही दी। जेल में जब प्राणिक हीलिंग की क्लास लगनी शुरू हुई तो पहले-पहल कैदियों ने इसमें खास रुचि नहीं दिखाई। जैसे-जैसे समय बीतता गया कैदी इससे जुड़ते चले गए। कैदी कहते हैं कि इस पद्धति ने उन्हें जीवन की सही राह दिखाई है। इसने उन्हें निरोगी जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। विदित हो कि वर्तमान में जिला कारागार में लगभग 650 कैदी हैं, जिनमें 300 से ज्यादा प्राणिक हीलिंग पद्धति से जुड़ चुके हैं।

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