महामारी के साये में ओलंपिक खेलों को कैसे संभाल पाएगा जापान?

बेकाबू कोरोना महामारी के बीच ओलंपिक खेलों के आयोजन को लेकर जापान में आशंकाएं गहराती जा रही हैं। आयोजन की तैयारी और संचालन के लिए लगाए गए स्वयंसेवक खुद अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। साथ ही इन खेलों के लिए दुनिया भर से आने वाले खिलाड़ियों और अधिकारियों को संक्रमण से कैसे बचाया जाएगा, इस बारे में कोई भरोसेमंद आश्वासन अब तक अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति या जापान की आयोजन समिति ने नहीं दिया है। जर्मनी से आईं वॉलिंटियर बारबरा होल्थस ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से बातचीत में कहा- ‘वे (आयोजन से जुड़े अधिकारी) ना तो वैक्सीन की बात करते हैं, ना ही हमारी जांच कराने के बारे में कुछ कह रहे हैं।’ खबरों के मुताबिक अभी तक सिर्फ यह कहा गया है कि हर वॉलिंटियर को एक बोतल हैंड सैनिटाइजर और दो मास्क दिए जाएंगे। खेलों के आयोजन में अब सौ दिन से भी कम का समय रह गया है। पिछले साल कोरोना महामारी के कारण इन खेलों को स्थगित कर दिया गया था। लेकिन इस साल इन्हें कराने के अपने इरादे पर ओलंपिक कमेटी अड़ी हुई है। इस बीच जापान कोरोना महामारी की चौथी लहर का सामना कर रहा है। बीते हफ्ते ही देश में संक्रमित लोगों की संख्या पांच लाख से ज्यादा हो चुकी थी। हाल में रोजाना संक्रमित हो रहे लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। इस कारण देश के कुछ हिस्सों में आम गतिविधियों पर नए सिरे से प्रतिबंध लगाए गए हैं। ओलंपिक खेलों की शुरुआत अगले 23 जुलाई से होनी है। साइतामा मेडिकल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हिदेकी ओका ने राय जताई है कि तब तक जापान में महामारी की मौजूदा लहर पर काबू नहीं पाया जा सकेगा। ओलंपिक के लिए बड़ी संख्या में विदेश से लोग आएंगे। इसलिए जापान के लोगों को अंदेशा है कि ये आयोजन देश में महामारी का सुपरस्प्रेडर बन सकता है।

लोगों में बढ़ती चिंता के बीच जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने इस हफ्ते कहा कि उनकी सरकार जून के अंत तक कोरोना संक्रमण रोकथाम के वैक्सीन के दस करोड़ डोज का आयात करेगी। जापान की आबादी साढ़े 12 करोड़ से अधिक है। अब देश में सिर्फ 11 लाख लोगों को टीका लग सका है। यानी एक फीसदी से कम आबादी को टीका लगा है। टीके को दोनों डोज लेने वाले लोगों की संख्या कुल आबादी के सिर्फ 0.4 फीसदी के बराबर है। जर्मन वॉलिंटियर होल्थस ने कहा कि ओलंपिक खेलों का मेजबान बनना जीवन में एक बार आने वाला अनुभव होता है। लेकिन इस बार यह सचमुच एक खतरनाक अनुभव बन गया है। गौरतलब है कि टोक्यो 2020 (इस बार के ओलंपिक के आधिकारिक नाम) के आयोजकों ने सुरक्षित ओलंपिक कराने का वादा किया है, लेकिन देश और विदेश में इससे ज्यादा भरोसा पैदा नहीं हुआ है। ओलंपिक खेलों के आयोजन पर 25 अरब डॉलर का खर्च आएगा। शुरुआत में उम्मीद जताई गई थी कि इतने महंगे आयोजन का मेजबान कोरोना संक्रमण से अपने देश और इस आयोजन को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देगा। लेकिन जापान में वैक्सीन को मंजूरी देने की रफ्तार बेहद धीमी रही है। फाइजर-बायोएनटेक कंपनी के वैक्सीन को मंजूरी देने में दो महीने का समय लगा दिया गया। फरवरी में इसे नौजवानों को लगाने की इजाजत दी गई। बुजुर्ग नागरिकों को इसे लगाने का काम तो इस महीने 12 तारीख से जाकर शुरू हो सका है। इसलिए देश में सिर्फ 11 लाख लोगों का टीकाकरण हुआ है, जबकि इसी अवधि में चीन में 17 करोड़ और भारत में दस करोड़ से अधिक लोगों को टीका लग चुका है। चीन ने पेशकश की थी कि वह ओलंपिक खेलों में आने वाले सभी खिलाड़ियों को टीका मुहैया कराएगा। लेकिन जापान ने उसका ये प्रस्ताव ठुकरा दिया। बाद में फैसला हुआ कि इन खेलों में विदेशी दर्शकों को आने की इजाजत नहीं दी जाएगी। फिर भी विदेश से 11 हजार से ज्यादा खिलाड़ियों के आने की संभावना है। उनके अलावा हजारों वॉलिंटियर और अधिकारी आएंगे। जानकारों का कहना है कि अगर उन सबका टीकाकरण समय रहते नहीं हुआ, तो इस आयोजन के सचमुच संक्रमण का सुपरस्प्रेडर मौका बन जाने का खतरा मंडराता रहेगा। इसीलिए होल्थस की राय है कि ऐसे हालात में खेलों का आयोजन नहीं होना चाहिए। मगर अधिकारी ऐसी किसी सलाह को सुनने के लिए अभी तैयार नहीं हैं।

 

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