जब से मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की है, देश के अधिकांश राजनेताओं, काले धन पर ऐश कर रहे सरकारी अधिकारियों और कारोबारियों की तरह शर्मा जी भी बहुत बेचैन हैं। वैसे शर्मा जी बहुत सज्जन आदमी हैं। उनका मन भले ही काला हो, पर काले धन से उनका कोई खास लेना-देना नहीं है। फिर भी आम जनता को जो परेशानी बैंक में जमा अपने ही पैसे निकालने में हो रही है, उससे वे बहुत दुखी हैं। उन्हें इस बात का कष्ट था कि मोदी के विरोधी सड़कों पर क्यों नहीं उतरे?
इसलिए जब विपक्षी नेताओं ने ‘भारत बंद’ का आह्वान किया, तो शर्मा जी अपनी पार्टी का झंडा लेकर दिन भर मोहल्ले में और आसपास घूमे। उन्होंने लोगों से भारत बंद में सहयोग देने का आग्रह किया। लेकिन इस बंद की हवा बंद होने से पहले ही निकल गयी, जब नीतीश कुमार और नवीन पटनायक ने इसे मानने से इन्कार कर दिया। उन्होंने मोदी की इस पहल को बहुत साहसी और उचित कदम बताया। माहौल न बनता देख, कोई पार्टी इसे ‘आक्रोश दिवस’ कहने लगी, तो कोई ‘विरोध दिवस’। बंगाल और केरल में राज्य शासन के सहयोग के कारण इसका कुछ असर दिखायी दिया, पर शेष भारत में यह सारा आयोजन टांय-टांय फिस्स हो गया।
शर्मा जी के दुख की सीमा नहीं थी। क्या हो गया है देश की जनता को? लोग सुबह से ही बैंक और ए.टी.एम मशीनों के आगे लाइनों में लग रहे हैं। कुछ लोग तो खाने-पीने का सामान और बिस्तर भी साथ लेकर आते हैं। इसके बावजूद जनता इस विषय पर विपक्ष का साथ देने को तैयार नहीं है। शर्मा जी ने अपनी टूटी साइकिल उठायी और कांग्रेस के कार्यालय में जा पहुंचे। वहां कई पत्रकार भी बैठे थे। इसलिए ‘ऑन दि रिकार्ड’ कोई बोलने को राजी नहीं था। शर्मा जी एक नेता जी को पकड़कर पीछे वाले कमरे में ले गये।
– नेता जी, भारत बंद में जनता ने कोई सहयोग नहीं दिया?
– भारत बंद की बात हमने नहीं कही थी।
– लेकिन अगर ये हो जाता, तो कांग्रेस की धाक जम जाती।
– धाक तो क्या खाक जमनी है। आम जनता जानती है कि काला धन सबसे अधिक हमारी पार्टी के पास ही है। बाकी नेताओं का काला धन तो भारत में ही है, पर हमारे बड़े नेताओं के तार तो सीधे विदेश से जुड़े हैं। इसलिए उनका काला धन यहां से ज्यादा वहां है। जनता बोफोर्स की दलाली को अब तक भूली नहीं है। इसलिए हमारी बात पर अब जनता ने विश्वास करना बंद कर दिया है।
– लेकिन राहुल बाबा नोट बदलवाने खुद बैंक में गये। इससे तो अच्छा संदेश गया होगा?
– एक दिन तो लोग इससे प्रभावित हुए; पर अगले दिन मोदी के भाषण ने सब धो दिया। फिर करोड़ों रु. की बुलेट प्रूफ गाड़ी में, सुरक्षा गार्डों के साथ जाकर चार हजार के नोट बदलवाने का नाटक करने की क्या जरूरत थी? जनता ऐसे नाटकों से ऊब चुकी है।
यह सुनकर शर्मा जी मन खट्टा हो गया। वे अब केजरी ‘आपा’ के दफ्तर में जा पहुंचे। वहां बैठे लोगों में भी कोई उत्साह नहीं था।
– क्यों जी, आपकी पार्टी ने तो भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध लड़कर ही दिल्ली में सत्ता पायी है। आपको तो मोदी का समर्थन करना चाहिए था; पर आपके नेता इसके खिलाफ बोल रहे हैं। दिल्ली की जनता ने भी इस बंद में आपका साथ नहीं दिया?
– साथ क्यों नहीं दिया, सोने-चांदी का बाजार बंद रहा।
– वह तो काफी दिन से बंद जैसा ही है। क्योंकि काले धन का बड़ा ठिकाना तो सोना ही है; पर बाकी बाजार तो खुला रहा।
इस पर एक दूसरे नेता जी बोले, ‘‘इस मुद्दे पर मोदी का विरोध करके केजरीवाल ने ठीक नहीं किया। इससे उनकी अपनी साख बहुत घट गयी है।’’
– कुछ लोग कह रहे हैं कि पंजाब में चुनाव के लिए आपकी पार्टी ने भी काफी बेनामी चंदा लिया है?
– ये तो बड़े लोग जानें; पर जो लिया, वह भी तो अब रद्दी हो गया।
– तो केजरीवाल की नाराजगी का कारण यही तो नहीं है?
यह सुनकर कुछ लोग झाड़ू लेकर शर्मा जी को मारने दौड़े। शर्मा जी अपनी साइकिल उठाकर साइकिल पार्टी वाले कार्यालय में चले गये। वहां बुरी तरह सन्नाटा छाया था। आवाज देने पर पिछले कमरे से एक आदमी आया। शर्मा जी को देखते ही वह बोला, ‘‘भैया, एक हफ्ते का टैम मिल जाता, तो नेता जी सब ठीक कर लेते; पर अब तो सब तरफ कंगाली छायी है। पता नहीं यू.पी. का चुनाव कैसे लड़ेंगे? एक तो घर में दरार, ऊपर से नोटबंदी की मार। भगवान भली करे।’’
शर्मा जी दिन भर में कई पार्टी वालों के पास गये। मायावती, ममता और लालू सबसे अधिक परेशान थे। परेशान तो भा.ज.पा. वाले भी थे। चोट तो उनमें से भी कइयों पर बड़ी गहरी लगी है, पर वे खुला विरोध नहीं कर सकते। नोटबंदी न हुई, गले की हड्डी हो गयी। उगलें तो मुसीबत और निगलें तो परेशानी। कई घंटे तक धक्के खाने के बाद शर्मा जी थक कर एक चाय की दुकान पर बैठ गये। चाय वाले ने जो बात बतायी, उससे उनकी बुद्धि के कपाट खुल गये। उसने कहा कि बंद कराना हो या धरना-प्रदर्शन। तोड़फोड़ करानी हो या गिरफ्तारी। आजकल सब काम नकद पैसे से ही होता है। जितना पैसा खर्च करो, उतने लोग जुट जाते हैं; पर एक चाय वाले ने ये सारा पैसा एक रात में रद्दी कर दिया। तो फिर लोग कहां से आते? भारत बंद की विफलता का ये सबसे बड़ा कारण है। शर्मा जी को अपनी बुद्धिमत्ता पर बड़ा गर्व था; पर चाय वाले ने काले धन की तरह उनकी बुद्धि का भी कबाड़ा कर दिया। तब से कोई उनसे इस बारे में पूछे, तो वे कहते हैं, ‘‘भारत बंद तो नहीं हुआ, हां नेताओं के मुंह जरूर बंद हो गये हैं।’’