केदारनाथ आपदा बरसी: पुनर्वास की आस अब भी अधूरी,

देहरादून । उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित गांवों के पुनर्वास की आस अब भी अधूरी है। आपदा के लिहाज से प्रदेश में संवेदनशील 450 गांवों का पुनर्वास होना है। लेकिन सीमित संसाधन होने की वजह से प्रदेश सरकार गांवों का पुनर्वास करने में असमर्थ है। उसकी निगाहें केंद्र सरकार पर टिकी है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को जब भी अवसर मिला, उन्होंने आपदा की जद में बसे इन गांवों के पुनर्वास का मुद्दा उठाया है। अभी तक केंद्र की तरफ से संवेदनशील गांवों का पुनर्वास करने के लिए कोई मदद नहीं मिल पाई है। आपदा की दृष्टि से उत्तराखंड संवेदनशील है। प्रदेश के सामने भूस्खलन, भारी बरसात, बादल फटने, बाढ़ और भूकंप जैसी आपदा से निपटने की सबसे बड़ी चुनौती है। आपदा की जद में आने वाले गांवों की संख्या हर साल बढ़ रही है। आपदा के लिहाज से प्रदेश में 450 गांव संवेदनशील और अति संवेदनशील है। इन गांवों में बसे लोगों का सुरक्षित स्थान पर बसाने की बातें लंबे समय से हो रही है। हर सरकार में पुनर्वास का मसला उठता रहा है। इसके बावजूद भी पुनर्वास की आस अधूरी है। राज्य गठन के 19 सालों में पहली बार प्रदेश सरकार अत्यधिक संवेदनशील गांवों का पुनर्वास की दिशा में पहल करने जा रही है। इसके लिए सरकार को केंद्र से करीब 10 हजार करोड़ की मदद की दरकार है।

450 गांवों का होना है पुनर्वास

प्रदेश में आपदा के लिहाज से संवेदनशील गांवों की संख्या 450 से ज्यादा है। इनमें 50 से ज्यादा गांवों अत्यधिक संवेदनशील हैं, जिनका जल्द से जल्द पुनर्वास होना आवश्यक है। वित्तीय संसाधनों के अभाव में सरकार सभी गांवों का पुनर्वास करने में असमर्थता जताती रही है। लेकिन अब सरकार ने हर जिले से कम से कम एक अत्यधिक संवेदनशील गांव का पुनर्वास करने का निर्णय किया है। इसी कड़ी में बागेश्वर जनपद के कपकोट तहसील के दोबाड़ गांव में 13 और बड़ेत में 11 परिवारों का पुनर्वास होगा, जबकि कांडा तहसील के कुल चार परिवारों का पुनर्वास किया जाना है।

आपदा प्रभावित एक जुलाई से शुरू करेंगे अनशन
भिलंगना ब्लाक के बूढ़ाकेदार क्षेत्र के जखाणा और कोट में 2018 की आपदा से क्षतिग्रस्त हुए उच्च प्राथमिक स्कूल भवन, संपर्क मार्ग, पुलिया, सुरक्षा दीवार आदि की मरम्मत न होने पर ग्रामीणों ने रोष व्यक्त किया। परिसंपत्तियों की मरम्मत और पुनर्निर्माण न होने पर एक जुलाई से बेमियादी अनशन शुरू करने की चेतावनी दी। अगस्त 2018 में बूढाकेदार के कोट और जखाणा गांव के ऊपर बादल फटने के कारण चार ग्रामीणों की मौत से लेकर कई घर, आवगमन के पैदल रास्ते, कुमैड गदेरा, पितरू, थालमा, पिख्यारा गदेरों पर बने पैदल पुलिया, और जखाणा गांव स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय भवन, किचन, शौचालय भी क्षतिग्रस्त हो गए थे, लेकिन एक साल बाद भी क्षतिग्रस्त परिसंपत्तियों की मरम्मत नहीं हो पाई। पूर्व प्रधान गजेंद्र सिंह बगूडा, शेर सिंह रावत, उम्मेद सिंह, राजेंद्र सिंह, बादर सिंह ने बताया कि क्षतिग्रस्त संपत्तियों की मरम्मत और पुनर्निर्माण न होने के कारण ग्रामीणों को परेशानी उठानी पड़ रही है।  उन्होंने सीएम को ज्ञापन भेजकर जल्द समस्याओं का निराकरण न होने पर एक जुलाई से गांव में ही बेमियादी अनशन शुरू करने की चेतावनी दी। इस संबंध में एसडीएम फिंचाराम चौहान का कहना है, कि आपदा आए एक वर्ष बीत गया है। वहां की फाइल देख कर बताया जाएगा कि क्या समस्या है।  स्कूल भवन निर्माण की फाइल शिक्षा विभाग को भेजी गई है।

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